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TARALH EHINASAR (BIKANER) - ' . -1 कर्मवाद का अन्तर्रहस्य मे ऐसा व्यवस्थाक्रम है नही और ईश्वर फलदाता के रूप मे समझा नहीं जाना चाहिए । जीव स्वय कर्मों का कर्ता है और स्वय फल का भोवता है, यही सुलगत सिद्धान्त है । कहा भी है
स्वय कृत फर्म यदात्मना पुरा, फल तदीय लभते शुभाशुभम् । परेग दत्त यदि लभ्यते स्फुट,
स्वयं कृतं कर्म निरर्थकं तरा॥ अर्थात् जीव स्वय जो पहले कर्म करता है, उसी का शुभाशुभ फल प्राप्त होता है । यदि दूसरे के द्वारा दिया गया शुभ या अशुभ फल उसे मिले तो उसके किये हुए कर्म निरर्थक हो जाते हैं।
यहां एक शका की जा सकती है कि जब शुभ कर्म का फल शुभ ही तथा अगभ कर्म का फल प्रगुभ ही होता है फिर कई लोग शुभ कर्म करते हए शुभ फल भोगते वयो देखे जाते हैं व इससे विपरीत भी । इसका समाधान यह है कि तीनो कालो की पारस्परिक सगति पर कर्मवाद अवलम्बित है। वर्तमान का निर्माण भूत के प्राधार पर व भविष्य का वर्तमान के श्राधार पर होता है। अतः शुभ कर्म का फल अगुभ व इसके विपरीत प्ररथा मे यह मानना चाहिए गि वह फल उसके पूर्वजन्मकृत कर्मों का मिल रहा है । जो अभी दिया जा रहा है, उससे उनके भविष्य का निर्माण होगा ।
पब जन दर्शन की मान्यतानुसार वर्ग के स्वरूप पर मैं आपके मामने मुर रोदानी चालना चाहूंगा।
प्रमुखतया वर्ग के दो रप माने गये है- (1) भावार्म और (६) यव । भादवम प्रात्मगत समार-विपयो की उपग है जैसे मोह ६ गगोप यादि जो मान के कारण घात्मा की नावित अवस्था के सोलक ने है। जिनको देवान्त मे माया, मान में प्रकृति, बौद्ध में वामना, नमामिद ने मानदि नामों में कहा गया है। इन भावकों के द्वारा
मापने पास-पान हे माहिम परमाणुमो को प्राप्ट वरता है