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SHREE JAIN JAWAHAR PUSTAKALALA
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BHINASAR BIKANER) •
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अन महिंसा और उत्कृष्ट समानती"
अपने प्रार्यदेश भारत और उसमें भी राजस्थान, मध्यभारत आदि कितने ही अन्य प्रदेश हैं जहां जैन-सस्कारो के कारण काफी भाइयो मे इतनी दयालुता मिलेगी कि उनको कहा जाय कि अमुक धनराशि ले लो और बकरे को अपने हाथो से काट दो तो सभावना है कि वे ऐसा न कर सकेंगे, बल्कि छोटे-छोटे प्राणियो की भी वे करुणा से रक्षा करते हैं । इस प्रकार शारीरिक हिंसा की तरफ उनको अपने मातृसस्कार, कुल परम्परा आदि की वजह से घृणा है किन्तु जरा मानसिक एव वाचिक हिंसा की तरह भी वे अपना ध्यान वढाएं तो अहिंसा के आन्तरिक प्रानन्द का उनमे भाभास बढ सकेगा । जो भाई छोटे-छोटे जीवो को नही मारने की प्रवृत्ति मात्र से अपने को कृतकृत्य समझते हैं, जिससे मालूम होता है कि मनुष्य की तरफ उनका ध्यान ही नही जाता।
प्राज के प्राधिक युग मे जिस प्रकार से मनुष्य का शोषण और दमन होता है, वह भी एक दर्दनाक परिस्थिति है । अपने साथी मनुष्य का दिल दुखाना, उसके प्रति कटु व्यवहार करना कटुवचन कहना एवं मन से ईर्ष्या, देष एव प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र मे कइयो के प्रति बुरा चिन्तन करना, ये सव भाज की ऐसी बुराइयाँ है जिनकी पोर अहिंसा के साधक का ध्यान सबसे पहले जाना चाहिए । अहिंसा के जो ये मार्ग हैं, उन पर चलकर ही आत्मा का विकास भली-भांति साधा जा सकता है।
प्रब कल्पना कीजिए ऐसे समाज और विश्व को, जिसमे व्यक्ति यदि चाहिसा की साधना जनदृष्टि जो कि मानवीय दृष्टि है, के अनुसार करने लगे पौर उसी रीति ने प्रपने पारस्परिक व्यवहार को ढालें तो सभव है कि यहां शोषण और दमन रह जाएं, व्यक्तियो और राष्ट्रो के बीच शत्रुता एव कटुता रह पाए ? बार इसका उत्तर है कि यह सनव नही है । अहिंसा का पथ राजपथ है जिन पर चलकर इहलोक और परलोक दोनो का भली-भांति निर्माण किया जा सकता है ।
हिमा का साधन वीरो का है । कायर तो नवते पहले मानसिक हिंसा से है प्रधिक पीडित है । ऐना व्यक्ति मानसिक हिंसा से दूसरो को तो गिरा