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जैन पूजांजलि
जिय कब तक उलझोगा संसार विजल्पो में ।
कितने भवबीत चुके संकल्प विकल्पों में । चैत्र मास को कृष्ण अमावस्या को शिव सन्देश दिया। जय अनन्त जिन भव्य जनों को परम श्रेष्ठ उपदेश दिया। ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय चैत्र कृष्ण अमावस्याम ज्ञा
कल्याणक प्राप्ताये अर्घम नि० स्वाहा । चैत्र कृष्ण की श्रेष्ठ प्रमावस्या तुमने निर्वाण लिया। कूट स्वयंभू सम्मेदाचल देवों ने जयगान किया । हो प्रयोग केवली योग का प्रथम समय में अन्त किया। जय अनन्त प्रभु निज सिद्धत्व प्रगट कर पद भगवन्त लिया।
ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय कार्तिक कृष्णा अमावस्याम् मोर ____मङ्गल मण्डिताय अर्घ्यम नि• स्वाहा ।
जयमाला 8 चतुर्दशम् तीर्थङ्कर स्वामी पूज्य अनन्तनाथ भगवान् । दिव्य ध्वनि के द्वारा तुमने किया भव्य जन का कल्याण ॥ थे पचास गणधर जिनमें पहिले गणधर थे जय मुनिवर । सर्वश्री थी मुख्य आयिका श्रोता भव्य जीव सुर नर ॥ चौदह जीव समास मार्गणा चौदह तुमने बतलाये । चौदह गुण स्थान जीवों के परिणामों के दर्शाये ॥ बादर सूक्ष्म जीव एकेन्द्रिय पर्याप्तक व अपर्याप्तक । दो इन्द्रिय त्रय इन्द्रिय चतुइन्द्रिय पर्याप्त अपर्याप्तक । संजी और असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त अपर्याप्तक । येही चौदह जीव समास जीव के जग में परिचायक ॥ गति इन्द्रिय कषाय अरु लेश्या वेद योग संयम सम्यक्त्व । काय अहार ज्ञान दर्शन पर हैं संजोत्व और भव्यत्व ॥