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जन पूजांजलि
समकित का दीप जला अंधियारा दूर हुआ ।
अज्ञान तिमिर नाशा भ्रम तम चकचूर हुआ । जय जिनराज अनन्तनाथ प्रभु तुम दर्शन कर हर्षाया। गुण अनन्त पाने को दर्शन करने चरणों में आया । ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्रीय अनर्घ पद प्राप्ताय अर्घ्यम् नि ।
श्री पंच कल्याणक कार्तिक कृष्णा एकम् के दिन हुमा गर्भ कल्याण महान । माता जय श्यामा उर प्राये पुष्पोत्तर का त्याग विमान ॥ नव बारह योजन की नगरी रची अयोध्या श्रेष्ठ प्रधान । जय अनन्त प्रभु मणि वर्षा की पन्द्रह मास सुरों ने प्रान ॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय कार्तिक कृष्ण प्रतिप्रदा गर्भ कल्याणक
संयुक्ताय अर्घ्यम निर्वपामीति स्वाहा । नगर अयोध्या सिंहसेन नृप के गृह गूजी शहनाई। ज्येष्ठ कृष्ण द्वादश को जन्मे सारी जगती हर्षायो । ऐरावत पर गिरि सुमेरु ले जा सुरपति ने न्हवन किया। जय अनन्त प्रभु सुर सुरांगनाओं ने मङ्गल नृत्य किया।
ॐ ह्रीं श्री अतन्तनाथ जिनेन्द्राय ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशी जन्म कल्याण ___ मण्डिताय अर्घ्यम् नि० स्वाहा । उल्कापात देखकर तुमको एक दिवस वैराग्य हुआ। ज्येष्ठ कृष्ण द्वादश को स्वामी राज्य पाट का त्याग हुप्रा॥ गये सहेतुक वन में तरु अश्वत्थ निकट दीक्षा धारी। जय अनन्त प्रभु नग्न दिगम्बर वीतराग मुद्रा धारी ॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्राय ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशी तप कल्याणक
प्राप्ताय अय॑म् नि० स्वाहा। एक मास तक प्रतिमा योग धार कर शुक्ल ध्यान किया। चार घातिया कर्म नाश कर तुमने केवल ज्ञान लिया ।