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जैन पूजांजलि
रागादिक हिंसादि भाव हैं यह दृढ़ निश्चय लो उरधार ।
रागादिल भव दुख के कारण रागादिक से है संसार । क्रोध कषाय विनाशक दुर्गति नाशक मुनियों द्वारा पूज्य । व्रत संयम को सफल बनाता सुगति प्रदाता है अति पूज्य ॥ जहां क्षमा है वहीं धर्म है स्वपर दया का भूल महान । जय जय उत्तम क्षमा धर्म की जो है जग में श्रेष्ठ प्रधान ॥ ॐ ह्रीं उत्तम क्षमा धर्मा गाय अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा ।
उत्तम मार्दव उत्तम मार्दव धर्म ज्ञानमय वसु मद रहित परम सुखकार । मान कषाय नष्ट करता है विनय गुणों का है भण्डार । विनय बिना तत्वों का हो सकता न कभी सम्यक् श्रद्धान। दर्शन ज्ञान चरित्र विनय तप बिना न होता सम्यक् ज्ञान । जहां मार्दव वहीं धर्म है वही मोक्ष नगरी का द्वार । उत्तम मार्दव धर्म हमारा विनय भाव की जय-जयकार । ॐ ह्रीं उत्तम मार्दव धर्मा गाय अर्घम् नि० स्वाहा ।
उत्तम आर्जव उत्तम आर्जव धर्म कुटिलता से विरहित ऋजुता से पूर्ण । निज आतम का परम मित्र है करता माया शल्य विचूर्ण ॥ लेश मात्र भी मायाचारी कुगति प्रदायक अति दुखकार । सरल भाव चेतन गुणधारी टंकोत्कीर्ण महा सुखकार ॥ शिवमय शाश्वत मोक्ष प्रदाता मङ्गलमय अनमोल परम । उत्तम प्रार्जव धर्म आत्म का अभय रूप निश्चल अनुपम ॥ ॐ ह्रीं उत्तम आर्जव धर्मा गाय अर्घ्यम् नि० ।
उत्तम शौच उत्तम शौच धर्म सुखकारी मन वच काया करता युद्ध । लोभ कषाय नाश कर देता समकित होता परम विशुद्ध।