________________
जैन पूजांजलि
[४३
आत्म भान के बिना न होता है सम्यक् व्यवहार भी। आत्म ज्ञान के बिना न होता निज आतम से प्यार भी।
- -
-
अगणित पुष्प सुवासित पाकर काम व्याधि ना मिट पाई। अब कन्दपं दपं हरने को आज धर्म की सुधि पाई ॥ उत्तम० __ॐ ह्रीं उत्तम क्षमादि दश धर्माय कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम् नि । जड़ की रुचि के कारण अब तक निज को तृप्ति न हो पाई। सहज तृप्त चेतन पद पाने आज धर्म की सुधि पाई ॥ उत्तम __ ॐ ह्रीं उत्तम क्षमादि दश धर्माय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्य नि० । मिथ्या भ्रम की चकाचौंध में दृष्टि शुद्ध ना हो पाई। मोह तिमिर का अन्त कराने प्राज धर्म की सुधि आई ॥ उत्तम०
ॐ ह्रीं उत्तम क्षमादि दश धर्मागाय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि० । आत रौद्र ध्यानों में रहकर धर्म ध्यान छवि ना भाई। अष्ट कर्म विध्वंस कराने आज धर्म की सुधि आई ॥ उत्तम
ॐ ह्रीं उत्तम क्षमादि दश धर्मागाय अष्ट कर्म विध्वंसनाय धूरम् नि० । राग हेय परिणति फल पाकर निज परिणति ना मिल पाई। फल निर्वाण प्राप्त करने को आज धर्म की सुधि प्राई ॥ उत्तम०
ॐ ह्रीं उत्तम क्षमादि दश धर्मा गाय मोक्ष फल प्राप्तये फलम् नि० । चौरासी के क्रूर चक्र में उलझा शान्ति न मिल पाई। निज अमरत्व प्राप्त करने को प्राज धर्म की सुधि आई ॥ उत्तम क्षमा मार्दव आजव शौच सत्य संयम तप त्याग । आकिंचन्य ब्रह्मचर्य धर्म के दशलक्षण से हो अनुराग ॥ ॐ ह्रीं उत्तम क्षमादि दश धर्मा गाय अनर्घ्य पद प्राप्तये अर्घ्यम् नि ।
उत्तम क्षमा उत्तम क्षमा धर्म है सुख का सागर तीन लोक में सार। जन्म मरण दुख का अभाव कर शीघ्र नाश करता संसार।