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जैन पूजांजलि
एक समय की सामायिक में कितनी शक्ति भरी। अल्पकाल में मुक्ति प्राप्त हो ऐसी युक्ति खरी ।।
क्षमा शील संयम व्रत तप शुचि विनय सत्य उर में लाया। निज अनन्त सुख पाने को प्रभु मैं वसु द्रव्य अर्घ लाया ।। पंचमेरु के प्रस्सी जिन चैत्यालय को बन्दन करलूँ । भक्तिभाव से पूजन करके मैं भव सागर दुख हरलूँ ॥ ___ॐ ह्रीं पंचमेरु सम्बन्धी जिन चैत्यालयस्थ जिन बिम्बेभ्यो अर्घम् नि। जम्बूद्वीप सुमेरु सुदर्शन परम पूज्य प्रति मन भावन । भू पर भद्रशाल बन पाँच शतक योजन पर नन्दन वन ॥ साढ़े बासठ सहस्र योजन ऊंचा है सौमनस सुवन । फिर छत्तीस सहस्त्र योजन को ऊँचाई पर पाण्डुक बन ॥ चारों वन की चार दिशा में एक एक जिन चैत्यालय । सोलह चैत्यालय हैं अनुपम विनय सहित नन्दू जय जय ॥
ॐ ह्रीं जम्बूदीप सुदर्शन मेग सम्बन्धी पोडश जिन चैत्यालयस्थ जिन विम्बेभ्यो अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा । खण्ड घातकी पूर्व दिशा में बिजय मेरु पर्वत पावन । भू पर भद्रशाल बन पाँच शतक योजन पर नन्दन बन ॥ साढ़े पचपन सहस्त्र योजन ऊंचा है सौमनस सुवन । अट्ठाईस सहस्त्र योजन की ऊँचाई पर पाण्डुक बन ॥चारों.. ___ॐ ह्रीं धातकी खण्ड पूर्व दिशा विजय मेरु सम्बन्धी पोडश जिन चन्यालयस्थ जिन विम्बेभ्यो अर्घम् नि० स्वाहा। खण्ड धातको पश्चिम रिशि में अचल मेरा पर्वत सुन्दर । विजय मेरु सम इस पर भी हैं सोलह चैत्यालय मनहर ॥ प्रातिहार्य पाठों वस मङ्गल द्रव्यों से जिन गृह शोभित । देव इन्द्र विद्याधर चक्री दर्शन कर होते हर्षित ॥ चारों...