________________
३४]
जैन पूजांजलि चिदानंद चैतन्य भाव ही एक जगत में सार है ।
आर्त रोद्र ध्यानों से पूरित यह संसार असार है। पंचमेरु के अस्सी जिन चैत्यालय को बन्दन करलू । भक्तिभाव से पूजन करके मैं भव सागर दुख हरलू ॥
ॐ ह्रीं श्री सुदर्शन, विजय, अचल मन्दिर विद्युन्माली, पंचमेरु सम्बन्धी जिन चैन्यालयस्थ जिन बिम्बेभ्यो जलम् निर्वपामोति थ्वाहा। भव दावानल को भीषण ज्वाला में जल जल दुख पाया। ताप निकंदन निज गुण चन्दन शोतलता पाने आया |पंचमेरु...
ॐ ह्रीं पंचमेम सम्बन्धी जिन चैत्यालयस्थ जिन विम्वेभ्यो चन्दनम् नि०। भव समुद्र को चारों गतिमय भंवरों में गता खाया। प्रक्षय पद पाने को हे प्रभु ! कभी न अक्षत गुण भाया ॥पंचमेरु०
ॐ ह्री पंचमेरु सम्बन्धी जिन चैत्यालयस्थ जिन विम्बेभ्यो अक्षतम् निः। काम भाव से भव दुख को श्रृङ्खला बढ़ाता हो पाया। महाशील के सुमन प्राप्त करने को देवशरण पाया ॥ पंचमेरु...
ॐ ह्रां पंचमेरु सम्बन्धी जिन चैत्यालयस्थ जिन विम्वेभ्यो पुष्पम् नि । जग के अनगिनती द्रव्यों को पाकर तृप्त न हो पाया। इसीलिये निर्लोभ वृत्ति नैवेद्य प्राप्त करने प्राया ॥पंचमेरु...
ॐ ह्रीं पंवमेरु सम्बन्धी जिन चैत्यालयस्थ जिन बिम्बेभ्यो नैवेद्यम् नि। अन्धकार में मार्ग भूलकर भटक भटक अति दुख पाया। सम्यक् ज्ञान प्रकाश प्राप्त करने को यह दीपक लाया |पंचमेरु .
ॐ ह्री पंचमेरु सम्बन्धा जिन चैःयालयस्थ जिन बिम्बेभ्यो दीपम् नि । विकट जगत जंजाल कर्ममय इसको तोड़ नहीं पाया। प्रात्म ध्यान को ध्यान अग्नि में कर्म जलाने मैं प्राया ॥चमेरु...
ॐ ह्रीं पंचमेरु सम्बन्धी जिन चैत्यालयस्थ जिन विम्वेभ्यो धूपम् नि । भव अटवो में अटका अब तक नहीं धर्म का फल पाया। चिदानन्द चैतन्य स्वभावो मोक्ष प्राप्त करने आया ॥ पंचमेरु...
ॐ ह्री पंचमेरु सम्बन्धी जिन चैत्यालयस्थ जिन बिम्बेभ्यो फलम् नि।