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जैन पूजांजलि
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निज में जागरूक रह पंच प्रमादो पर तुम जय पाओ। अप्रमत्त बन निज वैभव से सहज पूर्णता को लाओ।
तुम गुण का चिन्तवन करे जो स्वयं सिद्ध बन जाता है। हो निजात्म में लीन दुखों से छुटकारा पा जाता है । अविनश्वर अविकारी सुखमय सिद्ध स्वरूप विमल मेरा । मुझ में है मुझ से ही प्रगटेगा स्वरूप अविकल मेरा ॥ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं परमेष्ठिने पूर्घिम् नि० स्वाहा ।
शुद्ध स्वभावी प्रात्मा निश्चय सिद्ध स्वरूप । गुण अनन्तयुत ज्ञानमय है त्रिकाल शिवभूप ।।
॥ इत्याशीर्वादः ॥ ॐ ह्रीं श्री अनंतानंत सिद्ध परमेष्ठिभ्यो नमः ।
जाप्य
श्री षोडश कारण पूजन षोडश कारण पर्व धर्म का करू धर्म आराधना । मुक्ति सुनिश्चित यदि इस व्रत की हो निजात्म में साधना ॥ दुखी जगत के जीव मात्र का हित हो निज कल्याण हो। प्रविनश्वर लक्ष्मी से परिणय मोक्ष प्रकाश महान हो । पूर्ण ज्ञान कैवल्य अनन्तानंत गुणों का वास हो। तीर्थकर पद दाता सोलह कारण धर्म विकास हो ।
ॐ ह्रीं दर्शन विशुद्धियादि षोडश कारणानि अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।
ॐ ह्रीं दर्शन विशुद्धियादि षोडश कारणानि अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं दर्शन विशुद्धियादि षोडश कारणानि अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट् ।