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जन पूजांजलि
देवालय में देव नहीं है मनमंदिर में देव है ।
अंतर्मुख हो देख स्वय तू महादेव स्वयमेव है ॥ धन्य धन्य अवसर प्राया है अब निज के उद्धार का। श्रुत पंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ॥ गूजा जय जय नाद जगत् में जिन श्रु तजय जयकार का। ॐ ह्रीं श्री परम श्रु न पट खण्डागमाय पूर्णाघम् नि० ।
श्रत पंचमी सुपर्व पर करो तत्त्व का ज्ञान । आत्म तत्त्व का ध्यान कर पात्रो पद निर्वाण ॥
५ इत्याशीर्वादः ४ जाप्य- ॐ ह्रीं श्री परम श्रुतेभ्यो नमः ।
श्री वीर शासन जयन्ती पूजन वर्धमान प्रतिवीर वीर प्रभु सन्मति महावीर स्वामी । वीतराग सर्वज्ञ जिनेश्वर अन्तिम तीर्थङ्कर नामी ॥ श्री अरिहंत देव मङ्गलमय स्व पर प्रकाशक गुणधामी । सकल लोक के ज्ञाता दृष्टा महा पूज्य अन्तर्यामी । महावीर शासन का पहला दिन श्रावण कृष्णा एकम । शासन वीर जयन्ती आती है प्रतिवर्ष सुपावनतम ॥ विपुलाचल पर्वत पर प्रभु के समवशरण में मङ्गलकार । खिरी दिव्य ध्वनि शासन वीर जयन्ती पर्व हुआ साकार ॥ प्रभु चरणाम्बुज पूजन करने का आया उर में शुभ भाव । सम्यक् ज्ञान प्रकाश मुझे दो, राग द्वेष का करू प्रभाव ॥
ॐ ह्रीं श्री सन्मति वीर जिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर सवौषट् । ॐह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री वर्धमान जिनेन्द्र अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट् ।