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जैन पूजांजलि
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अंतर्मन निग्रंथ नहीं तो फिर सच्चा निग्रंथ नहीं । बाह्म क्रिया कांडों से होता इस भव दख का अत नहीं।
ज्येठ शुक्ल पंचमी दिवस था सरनर मङ्गलचार का । श्रुत पंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ॥ धन्य भूतवलि पुष्पदन्त जय श्री धरसेनाचार्य की । लिपि परम्परा स्थापित करके नई क्रांति साकार की ॥ देवों ने पुष्पों की वर्षा नभ से अगणित बार की । धन्य धन्य जिनवाणी माता निज पर भेद विचार की ॥ ऋणी रहेगा विश्व तुम्हारे निश्चय का व्यवहार का । श्रुत पंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ॥ धवला टीका वीरसेन कृत बहात्तर हजार श्लोक । जय धवला जिनसेन वीरकृत उत्तम साठ हजार श्लोक ॥ महा धवल है देव सेन कृत हैं चालीस हजार श्लोक । विजय धवल अरु अतिशय धवल नहीं उपलब्ध एकश्लोक । षट् खण्डागम टीकाएं पड़ मन होता भव पार का । श्रुत पंचमी पर्न अति पावन है श्रु त के अवतार का ॥ फिर तो ग्रन्थ हजारों लिक्खे ऋषि मुनियों ने ज्ञानप्रधान। चारों ही अनुयोग रचे जीवों पर करके करुणा दान ॥ पुण्य कथा प्रथमानुयोग द्रव्यानुयोग है तत्त्व प्रधान । ऐक्सरे करूणानुयोग चरणानुयोग कैमरा महान ॥ यह परिणाम नापता है वह बाह्य चरित्र विचार का। श्रुत पंचमी पर्व अति पावन है श्रुत के अवतार का ।। जिनवाणी की भक्ति करें हम जिन श्रुत को महिमा गायें। सम्यक् दर्शन का वैमवले भेद ज्ञान निधि को पायें ।। रत्नत्रय का अवलम्बन लें निज स्वरूप में रम जायें। मोक्ष मार्ग पर चलें निरन्तर फिर न जगत में भरमायें ।