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जैन पूजांजलि
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जो विकल्प है आश्रव युत है निर्विकल्प ही आश्रव हीन । जो स्वरूप में थिर रहता है वही ज्ञान है ज्ञान प्रवीण ॥
8 जयमाला x चार दान दो जगत में जो चाहो कल्याण ।
प्रौषधि भोजन प्रभय अरु सद् शास्त्रों का ज्ञान । पुण्य पर्व अक्षय तृतिया का हमें दे रहा है यह ज्ञान । दान धर्म की महिमा अनुपम श्रेष्ठ दान दे बनो महान ॥ दान धर्म को गौरव गाथा का प्रतीक है यह त्यौहार । दान धर्म का शुभ प्रेरक है सदा दान की जय जयकार ॥ आदिनाथ ने अर्ध वर्ष तक किये तपस्या मय उपवास । मिली न विधि फिर अन्तराय होते होते बीते छः मास ॥ मुनि प्राहार दान देने की विधि थी नहीं किसी को ज्ञात। मौन साधना में तन्मय हो प्रभु विहार करते प्रख्यात ॥ नगर हस्तिनापुर के अधिपति सोम और श्रेयांस सुभ्रात । ऋषम देव के दर्शन कर कृत कृत्य हुए पुलकित अभिजात॥ श्रेयांस को पूर्व जन्म का स्मरण हुमा तत्क्षण विधिकार । विधिपूर्वक पड़गाहा प्रभु को दिया इक्ष रस का आहार ॥ पंचाश्चर्य हुए प्रांगण में हुमा गगन में जय जयकार । धन्य धन्य श्रेयांस दान का तीर्थ चलाया मङ्गलकार ॥ दान पुण्य की यह परम्परा हुई जगत में शुभ प्रारम्भ । हो निष्काम भावना सुन्दर मन में लेश न हो कुछ दम्म ॥ चार भेद हैं दान धर्म के औषधि शास्त्र अभय आहार । हम सुपात्र को योग्य दान दे बनें जगत् में परम उदार ॥ धन वैभव तो नाशवान है अतः करें जी भर कर दान । इस जीवन में दान कार्य कर करें स्वयं अपना कल्याण ॥