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जैन पूजांजलि
पर परिणति दुर्मति से आज विमूढ़ हुआ हूं । निज परिणति के रथ पर में आरूढ़ हुआ हू ॥
पाता है ॥
शुद्ध श्रात्मा जो ध्याता वह पूर्ण शुद्धता पाता है । जो अशुद्ध को ध्याता है वह ही अशुद्धता पर भावों में जो न मूढ़ है दृष्टि यथार्थ वह अमूढ़ दृष्टि का धारी सम्यक् दृष्टि
सदा जिसकी ।
सदा उसकी || उत्तम०
सभी ॥
जुड़ा ।
ॐ ह्रीं श्री उत्तम क्षमा धर्मा गाय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यग्नि० । राग द्वेष मोहादि आश्रव ज्ञानी को होते न कभी । ज्ञाता दृष्टा को ही होते उत्तम संवर शुद्धातम की भक्ति सहित जो पर मावों से उपगूहन का अधिकारी है सम्यक् दृष्टि महान् बड़ा ॥ उत्तम० ॐ ह्रीं श्री उत्तम क्षमा धर्मा गाय मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि० । कर्म बन्ध के चारों कारण मिथ्या श्रवरति योग चेतयिता इनका छेदन कर करता है निर्वाण उपाय || जो उन्मार्ग छोड़कर निज को निज में सुस्थापित करता ।
कषाय ।
स्थिति करण युक्त होता वह सम्यक् दृष्टि स्वहित वरता ॥ उत्तम०
रहता दूर ।
ॐ ह्रीं श्री उत्तम क्षमा धर्मा गाय अप्टकर्म दहनाय धूपम नि०स्वाहा । पुण्य पाप मध सभी शुभाशुभ योगों से जो सर्व संग से रहित हुआ वह दर्शन ज्ञानमयी सम्यक् दर्शन ज्ञान चरित धारी के प्रति गौ वत्सल भाव । वात्सल्य का धारी सम्यक् दृष्टि मिटाता पूर्ण विभाव || उत्तम ०
सुख पूर ॥
भाव
नहीं
ॐ ह्रीं श्री उत्तम क्षमा धर्मा गाय मोक्षफल प्राप्ताय फलम् नि० स्वाहा । ज्ञान बिहीन कभी भी पल भर ज्ञान स्वरूप नहीं बिना ज्ञान के ग्रहण किये कर्मों से मुक्त नहीं विद्या रूपी रथ पर चढ़ जो ज्ञान रूप रथ चलवाता वह जिन शासन की प्रभावना करता शिव पद दर्शाता ॥ उत्तम०
होता ।
होता ॥