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________________ १३०] जैन पूजांजलि मैं ज्ञाता दृष्टा हूं चेतन चिद्र पी हूं । गुण ज्ञान अनंत सहित मैं सिद्ध स्वरूपी हूं। समयसार वैभव के उत्तम अक्षत गुण निज में लाऊँ। ४ "चारितं खलु धम्मो" सम्यक् चारित रथ पर चढ़ जाऊं ॥कुन्द० ॐ ह्रीं श्री कुन्द कुन्द आचार्य देवाय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतम् नि। समयसार वैभव के पावन पुष्पों में मैं रम जाऊ । ५ "दाणं पूजा मुख्खयसावयधम्मो" शील स्वगुण पाऊँ । कुन्द० ___ॐ ह्रीं श्री कुन्द कुन्द आचार्य देवाय कामवाण विघ्नंसनाय पुष्पं नि० । समयसार वैभव के मनभावन नैवेद्य हृदय लाऊँ । ६ जो जाणदि अरिहन्तं" निज ज्ञायक स्वभाव प्राश्रय पाऊँ ।कुन्द० ॐ ह्रीं श्री कुन्द कुन्द आचार्य देवाय क्षुधा रोग विनाशनायनैवेद्य नि०। समयसार वैभव के ज्योतिर्मय दीपक उर में लाऊ । ७ "दसण भट्टा भट्टा" मिथ्या मोह तिमिर हर सुख पाऊँ ।कुन्द० ॐ ह्रीं श्री कुन्द कुन्द आचार्य देवाय मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि। समयसार वैभव की शुचिमय ध्यान धूप उर में ध्याऊँ । ८ "ववहारोऽभूयत्थो" निश्चय प्राश्रित हो शिव पद पाऊँ ।कुन्द० ___ॐ ह्रीं श्री कुन्द कुन्द आचार्य देवाय अष्ट कर्म विध्वंसनाय धूपम् नि।। समयसार वैभव के भव्य अपूर्व मनोरम फल पाऊं। ६ "णियमं मोक्ख उवायो" द्वारा महा मोक्ष पद प्रगटाऊ ॥कुन्द० ॐ ह्रीं श्री कुन्द कुन्द आचार्य देवाय मोक्ष फल प्राप्ताय फलम् नि० । (४) प्र. सा. ७ - चरित्न ही धर्म है । (५) र. सा. १०-श्रावक धर्म में दान पूजा मुख्य है। (६) प्र. सा. ८०-जो अरहन्त को - - जानता है । (७) अष्ट. पा. ३- जो पुरुष दर्शन से भ्रष्ट हैं, वे भ्रष्ट हैं । (८) स. सा. ११ व्यवहार नय अभूतार्थ है । (९) नि. सा. ४ - (रत्नत्रय रूप) नियम मोक्ष का उपाय है।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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