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जंन पूर्जाजलि
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यह निकृष्ट पर परिर्णात तुझको, नर्क निगोद बताएगी। सर्वोत्कृष्ट स्वयं की परिणति, तुझे मोक्ष ले जाएगी।
पौष कृष्ण एकादशमी को हुआ प्रापका तप कल्याण । जय जय पाश्र्व जिनेश्वर प्रभु परमेश्वर जय जय दया निधान । ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय पौष कृष्णा एकादश्याम् तपो कल्याण
प्राप्तये अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। कमठ जीव ने अहि क्षेत्र पर किया घोर उपसर्ग महान् । हुए न विचलित शुक्ल ध्यान धर श्रेणी चढ़े हुए भगवान् ।। चैत्र कृष्ण को चौथ हो गई पावन प्रगटा केवल ज्ञान । जय जय पाश्र्व जिनेश्वर प्रभु परमेश्वर जय जय दया निधान । ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय चैत्र कृष्ण चतुर्थी ज्ञान कल्याणक
प्राप्तये अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा। श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन बने अयोगी हे भगवान् । अन्तिम शुक्ल ध्यान घर सम्मेदाचल से पाया पद निर्वाण ॥ कूट सुवर्ण भद्र पर इन्द्रादिक ने किया मोक्ष कल्याण । जय जय पार्श्व जिनेश्वर प्रभु परमेश्वर जय जय दया निधान ।। ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय श्रावण शुक्ल सप्तमी मोक्ष कल्याणक प्राप्तये अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला ४ तेईसवें तीर्थङ्कर प्रभु परम ब्रह्ममय परम प्रधान । प्राप्त महा कल्याणपंचकः पार्श्वनाथ प्रणतेश्वर प्राण ॥ वाराणसी नगर अति सुन्दर विश्वसेन नृप परम उदार । ब्राह्मी देवी के घर जन्मे जग में छाया हर्ष अपार ॥ मति श्रुति अवधि ज्ञान के धारी बाल ब्रह्मचारी विभुवान। अल्प आयु में दीक्षा धर के पंच महावत घरे महान ॥ चार मास छमस्थ मौन रह वीतराग अर्हन्त हुए। प्रात्म ध्यान के द्वारा प्रभु सर्वज्ञ देव भगवन्त हुए।