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जैन पूजांजलि
१५ परिणाम बंध का कारण है।
परिणाम मोक्ष का कारण ॥ समकित जल से तो अनादि को मिथ्या भ्रान्ति हटाऊँ मैं । निज अनुभव से जन्म मरण का अंत सहज पा जाऊँ मैं ॥ चिन्तामणि प्रभु पार्श्वनाथ की पूजन कर हर्षाऊँ मैं । सङ्कटहारी मङ्गलकारी श्री जिनवर गुण गाऊँ मैं ॥ ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं
निर्वपामीति स्वाहा । तन की तपन मिटाने वाला चन्दन भेंट चढ़ाऊँ मैं। भव प्राताप मिटाने वाला समकित चन्दन पाऊँ मैं ॥ चिन्ता० ___ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय संसार ताप विनाशनाय चन्दम् नि । अक्षत चरण समपित करके निज स्वभाव में आऊँ मैं । अनुपम शान्त निराकुल प्रक्षय अविनश्वर पद पाऊं मैं ॥ चिन्ता ___ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेद्राय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतम् नि० । अष्ट अङ्गयुत सम्यक् दर्शन पाऊँ पुष्प चढ़ाऊँ मैं। कामवाण विध्वंस करुं निज शील स्वभाव सजाऊँ मैं। चिन्ता
ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम् नि । इच्छाओं को भूख मिटाने सम्यक् पथ पर आऊँ मैं। समकित का नैवेद्य मिले तो क्षुधा रोग हर पाऊँ मैं ॥चिन्ता०
ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् नि । मिथ्यातम के नाश हेतु यह दीपक तुम्हें चढ़ाऊँ मैं । समकित दीप जले अन्तर में ज्ञान ज्योति प्रगटाऊँ मैं ॥ चिन्ता० ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपम्
निर्वपामोति स्वाहा । समकित धूप मिले तो भगवन् शुद्ध भाव में आऊं मैं । भाव शुभाशुभ धूम्र बन उड़ जायें धूप चढ़ाऊँ मैं । चिन्ता०
ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अष्ट कर्म दहनाय धपम् नि० ।