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जैन पूजांजलि पुण्यों की जब तक मिठास है वीतरागता नहीं सुहातो । जड की रुचि में विन्मरति चिन्मरति की रुचि व भी न भाती।
इन्द्रादिक ने उठा पालको हर्षित मङ्गलचार किया । नेमिनाथ प्रभु के तप कल्याणक पर जय-जयकार किया । ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय श्रावण शुक्ल षष्ठयां तपो मङ्गल
मण्डिताय अर्घम् नि० स्वाहा । प्राश्विन शुक्ला एकम् को प्रभु हुमा ज्ञान कल्याण महान । उर्जयंत पर समवशरण में दिया भव्य उपदेश प्रधान ॥ ज्ञानावरण, दर्शनावरणी मोहनीय का नाश किया। नेमिनाथ ने अन्तराय क्षय कर कैवल्य प्रकाश लिया। ॐ ह्री श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय आश्विन शुक्ला प्रतिपदायाम् ज्ञान मङ्गल
मण्डिताय अर्घम् नि० स्वाहा। श्री गिरनार क्षेत्र पर्वत से महा मोक्ष पद को पाया। जगतो ने प्राषाढ़ शुक्ल सप्तमी दिवस मङ्गल गाया ॥ वेदनीय अरु आयु नाम पर गोत्र कर्म अवसान किया। प्रष्ट कर्म हर नेमिनाथ ने परम पूर्ण निर्वाण लिया । ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय आपाढ़ शुक्ला सप्तभ्यां मोक्ष मङ्गल मण्डिताय अर्घम् नि० स्वाहा।
जयमाला जय नेमिनाथ नित्योदित जिन, जय नित्यानन्द नित्य चिन्मय। जय निविकल्प निश्चल निर्मल, जय निविकार नीरज निर्भय॥ नृपराज समुद्र विजय के सुत माता शिव देवी के नन्दन । प्रानन्द शौर्यपुर में छाया जय-जय से गूजा पाण्डुक वन ॥ बालकपन में कीड़ा करते तुमने धारे अणुव्रत सुखमय । द्वारिका पुरी में रहे अवस्था पाई सुन्दर यौवन वय ॥ प्राभोद-प्रमोद तुम्हारे लख पूरा यादव कुल हनिा । तब श्रीकृष्ण नारायण ने जूनागढ़ से जोड़ा नाता ॥