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जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल
पश्चिम से पूर्व चन्ति, उत्तर से दक्षिण, दक्षिण से उत्तर, ऊर्ध्व चरमान्त से आयोचरमान्त तक एक समय में जा सकता है। यह हुई परमाणु-पुद्गल की उत्कृष्ट गति। उसकी जघन्य गति होगी एक समय में एक आकाश-प्रदेश से मलग्न अन्य आकाश-प्रदेश में जाना।
परमाणु-पुद्गल की गति अणु-श्रेणी की होती है, अणु-श्रेणी अर्थात् मरल-रेखा। एक समय (काल की इकाई) में जितना देशान्तर हो, चाहे वह एक लोकान्त से दूसरे विपरीत लोकान्त तक का ही क्यो न हो, सरल रेखा मे ही होगा (तत्त्वार्थसूत्र भाष्य)। वियह होने से, एक से अधिक समय लगेगा। विग्रह पर प्रयोग से ही होता है-(तत्त्वार्थसूत्र २ २७ पर सिद्धिसेन गणि टीका)।
क्रिया व गति अपेक्षा-परमाणु-पुद्गल की क्रिया व गति कितनी ही अपेक्षाओ से नियत है तथा कितनी ही अपेक्षामो से अनियत है। लेकिन मुख्य रूप से अनियत है, इसीलिए तत्त्वार्थ राजवार्तिककार ने परमाणु की गति को अनियत कहा है (परमाणोगति अनियता)।
नियत नियम(१) देशान्तरगति सरल रेखा में होगी। (२) विग्रह होने से अर्थात् गति में वक्रता होने से अन्य
पुद्गल का प्रयोग आवश्यक है। (३) परमाणु की गति में जीव प्रत्यक्ष कारण नही हो सकता। (४) जघन्य चाल एक समय में एक प्रदेश का देशान्तर,