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जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल
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परमाणुत्रो के साथ बन्धन होने से सुगन्ध वाला दुर्गन्ध में, दुर्गन्ध वाला सुगन्ध में परिणमन कर सकता है । वन्धन भेद से भेद होने पर अपनी स्वाभाविक गन्ध में परिणमन कर लेता है । वन्धन अवस्था में परमाणु की स्वाभाविक गन्ध का विनाश या विलोप नही होता है ।
स्पर्श-पेक्षा- परमाणु-पुद्गल में उष्ण, शीत, रूक्ष, तथा स्निग्धइन चार स्पर्शो में से कोई दो अविरोवी स्पर्श होते है । श्रत. परमाणु-पुद्गल या तो (१) उष्ण- रूक्ष, या (२) उष्णस्निग्ध, या (३) शीत-रूक्ष या (४) शीत-स्निग्ध होगा । परमाणुपुद्गल में हलका- भारी स्पर्श नही होता, क्योकि यह अगुरु-लघु होता है और न परमाणु- पुद्गल में कठोर नरम स्पर्श होता है, क्योकि ये दोनो स्थूल स्कन्ध में ही सम्भव है । उष्ण, शीत, रूक्ष, तथा स्निग्ध की शक्ति एक गुण से श्रनन्तगुण तक की हो सकती है। जाति-अपेक्षा -- परमाणु- पुद्गलो की, भावगुणो की विभिन्नता के कारण, अनेक जातियाँ होती है । ५x५x२x४२०० मूल जातियाँ होगी तथा भावगुणो के शक्ति- गुणो की तारतम्यता से अनन्तानन्त जाति भेद होगे। पहला उदाहरण -- एक परमाणुपुद्गल काला है, सुगन्धवाला है, मीठा है, उष्ण तथा रूक्ष है । दूसरा परमाणु-पुद्गल लाल है, लेकिन अवशेप ऊपरवाले परमाणु की तरह है । पहले परमाणु जैसे भाव गुणवाले अनेक परमाणु
१ - तत्त्वार्थ राजवत्तिकम् ।