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________________ ६४ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल क्षेत्र-प्रदेश में स्थित परमाणु के साथ वन्धन प्राप्त होकर रह सकता है। स्कन्ध में वद्ध परमाणु भी स्वय एक ही क्षेत्रप्रदेश रोकता है, एक से अधिक नहीं रोक सकता है। क्षेत्र अवस्थान में सगी--जहाँ एक परमाणु पुद्गल है, वहाँ धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश है, अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश है, आकाश का एक प्रदेश है। जीव के अनन्त प्रदेश हो सकते है,पुद्गलास्तिकाय के भी अनन्त प्रदेश हो सकते है , अद्धा समय का स्यात् अवगाह होता है, स्यात् नही। यदि स्यात् अवगाह हो तो अनन्त श्रद्धा समय का अवगाह होता है। जेयत्व-अपेक्षा--परमाणु-पुद्गल को छद्मस्थ मनुष्यो में कोई जानता है, देखता नहीं है, कोई जानता भी नहीं है, देखता भी नही है। छमस्थ मनुष्य परमाणु को देख नही सकता। अवधिज्ञानी जीवो में कोई जानता है, देखता नही है, कोई जानता भी नही है, देखता भी नही है। अवधिज्ञानी जीव भी परमाणु-पुद्गल को देख नही सकता है। परमावधि ज्ञानी तथा केवलज्ञानी जीव परमाणु-पुद्गल को जानता भी है, देखता भी है, लेकिन जिस समय जानता है उस समय देखता नही, जिस समय देखता है उस समय जानता नहीं है। परमाणु-पुद्गल अति सूक्ष्म है, साधारण जीव के लिए अनुमेय कहा गया है। वर्ण-अपेक्षा-परमाणु पुद्गल में पाँच वर्गों में (लाल, पीला, १-भगवतीसूत्र १८ ८ •७ और १०, ११, १२
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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