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जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल
(६) "द्विस्पर्शी है" अर्थात्-रूक्ष, स्निग्य, शीत और उप्ण
---इन चार स्पर्शों में से परमाणु मे कोई दो अविरोधी स्पर्श होते है । परमाणु या तो रूक्ष-शीत, या रुक्ष
उष्ण, या स्निग्ध-गीत या स्निग्ध-उप्ण होता है। (७) "कार्यलिंग है"। परमाणु के सामूहिक कार्यों को
देखकर ही इसका अनुमान किया जाता है। परमाणु के धर्मों का भी स्कन्ध पुद्गलो के मूल धर्मों को देखकर अनुमान किया जाता है। साधारण ज्ञान वाले जीव के लिए "परमाणु पुद्गल" उसके कार्यों से ही अनुमेय है। केवल ज्ञानी तथा परमावधि-ज्ञानी ही इसको भाव से जानते व देखते है।
परमाणु पुद्गल के गुण
"परमाणु पुद्गल" अविभाज्य, अछेद्य, अभेद्य, और अदाह्य है। किसी भी उपाय, उपचार या उपाधि से परमाणु का भाग नही हो सकता है। वज्र पटल से भी परमाणु का विभाग या भाग नहीं हो सकता है। किसी शस्त्र सेतीक्ष्णातितीक्ष्ण से भी इसका
१-भगवतीसूत्र १८ ६ ५ २-भगवतीसूत्र १८ ८ ७ ३-भगवतीसूत्र १८ •८ ११ तया १२ ४-भगवतीसूत्र २० ५. १२