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________________ ४८ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल रस को मुख्य तथा अन्यो को । गौण मानकर ५ (५+२+५+५)= १०० भेद। गन्ध को मुख्य तथा अन्यो को गीण मानकर २ (५+५+ +५)== ४६ भेद । स्पर्श को मुख्य तथा अन्यो जो गौण मानकर ८ (५+५+२+६+५)=१८४ भेद । सस्थान को मुख्य तथा अन्यो को गौण मानकर ५ (५+५+२+८)=१०० भेद । ___ कुल ५३० भेद। ये भेद "परिस्थूर" न्याय की अपेक्षा से वताये गये हैं। जाति अपेक्षा से अनन्त भेद'--जाति अपेक्षा से परमाणु पुद्गल तथा स्कन्ध पुद्गल दोनो के अनन्त भेद होते हैं। परमाणु मव एक ही प्रकार के नहीं होते। वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श के सब उपभेद एक परमाणु में नहीं होते। एक परमाणु में कोई एक वर्ण, कोई एक रस, कोई एक गन्व तथा (उष्णशीत, स्निग्ध-रुक्ष में से) कोई दो अविरोधी स्पर्श होते हैं। जिन परमाणुप्रो मे एक ही तरह का वर्ण, रस, गन्ध तथा दो स्पर्श हो उन परमाणु पुद्गलो को एक जाति का कहेंगे। इस प्रकार वर्ण, रस, गन्व, स्पर्श के उपभेदो के सम्भाव्य मयोगो (Combinations) के कारण परमाणु भिन्न-भिन्न जाति के होते है। इसी १-राजवातिकम् ५ : २५ • ३
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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