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________________ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा मे पुद्गल अनन्त है। जीव से पुद्गल अनन्त गुण है। दो, दम, नस्यात, असख्यात, अनन्त परमाणुओ का परम्पर में वन्वन होकर जो स्कन्व बनते हैं, वे स्कन्व भी अनन्त ११ · पुद्गल लोक प्रमाण है पुद्गल लोक प्रमाण है अर्थात् पुद्गल लोक मे ही है, तथा परमाणु अनन्त है। अत द्रव्य की अपेक्षा पुद्गल अनन्त है। जीव से पुद्गल अनन्त गुण है। दो, दम, मत्यात, असत्यात, अनन्त परमाणुनो का परम्पर में वन्वन होकर जो स्कन्व बनते हैं वे स्कन्च भी अनन्त हैं। १२ पुद्गल जीव-ग्राह्य है जीव द्वारा ग्रहण होना यह पुद्गल का लक्षण है। पुद्गल में जीव को ग्रहण करने की कोई नक्ति या गुण नहीं है, केवल जीव द्वारा प्रहित होने का गुण है। जीव ही पुद्गल को आकर्षित करके ग्रहण करता है तथा ग्रहण करके पुद्गल के माय बन्धन को प्राप्त होता है। जीव का यह पुद्गल ग्रहण स्वक्षेत्र स्थित पुद्गलो का ही होता है अन्य क्षेत्र में स्थित पुद्गलो का नहीं। जीव का यह पुद्गल ग्रहण जीव के अपने कापायिक परिणामो मे होता है। सर्व जीव पुद्गल को ग्रहण नही करते हैं केवल नमारी जीव-मकपायी
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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