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दूसरा अध्याय पुदगल के लक्षणो का विश्लेषण
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यह लक्ष्य रखने की वस्तु है कि अनेक परमाणु पुद्गल विना वन्ध परिणाम को प्राप्त हुए भी एक आकाश क्षेत्र में एक काल में स्पृश या अस्पृश होकर रह सकते है।
वन्य दो प्रकार का होता है -प्रायोगिक और वित्रमा। वित्रसा के दो भेद होते है-सादि और अनादि। अनादि विनसा धर्म, अधर्म तथा आकाश का होता है। अन्य दृष्टि से वन्ध के और दो भेद होते है -देश-वन्ध और सर्व-बन्ध। एक प्रदेश का दूसरे प्रदेशो के माय सम्बन्ध देग-बन्ध है। एक प्रदेश में दूसरे प्रदेशों का समा जाना तथा एक प्रदेश-स्प हो जाना सर्ववन्ध है। मादि विलसा वन्य तीन प्रकार का होता है-वध प्रत्ययिक, भाजनप्रत्ययिक तथा परिणामप्रत्ययिका स्मस्निग्ध गुणों के कारण जो बन्धन होता है वह प्रत्ययिक है। भाजन आधार के निमित्त जो वन्धन होता है वह भाजनप्रत्ययिक है। उदाहरण ---एक वरतन (भाजन) में रही पुरानी शगव का मघट्ट होना। परिणाम प्रत्ययिक-परिणमन के निमित्त जो बन्धन होता है वह परिणाम प्रत्ययिक है (देखो भगवती सूत्रशतक ८ उद्देश्यः) __ भेद पाँच तरह से होता है --(१) खण्ड, (२) प्रतर, (३) चूणिका, (४) अनुतटिका तथा (५) उत्करिका। एकत्व परिणित द्रव्य के विश्लेपण को भेद कहते है।
६ पुद्गल परिणामी है पुद्गल परिणमन करता है। पुद्गलके परिणाम होता