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दूसरा अध्याय पुद्गल के लक्षणो का विश्लेषण
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द्रय को सक्रिय कहा जा सकता है। सभी द्रव्य गुण पर्यायवत् है। अन मभी द्रव्य निष्क्रिय भी है, नक्रिय भी है। इस प्रकार गुणो की ध्रुवता को निस्क्रियता तथा पर्याय के उत्पाद व्यय को क्रिया कहा जा सकता है।।
(२)पर्याय अनन्न है। अन क्रिया के भी अनन्त भेद या भाव है। नावारण भाव से पर्याय के दो भेद होते है --अर्थ-पर्याय और व्यजन-पर्याय । अर्थ-पर्याय मत्र द्रव्यों में होता है। द्रव्य के मामान्य परिणामिक भाव ने मभी द्रव्यो में एक समयवर्ती अर्य-पर्याय होती है। अर्थ-पर्याय का उत्पाद-व्यय प्रति समय होता है।
(३) व्यजन-पर्याय (म्वभाव एव विभावद्विविव ) केवल जीव व पुद्गल में होता है। व्यजन-पर्याय ममारी जीव तथा पुद्गल के विगेप पारिणामिन भाव तथा परिम्पन्दन निमित्त से होता है। इन पर्यायों की उत्पाद-व्यय क्रिया कभी होती है, कभी नहीं भी होती है। प्रति समय होने का ही इसका नियम नही है। प्रति
१-द्रव्यायिकगुणभावे पर्यायायिकप्रधान्यात् सर्वेभावा उत्पादव्यय दर्शनात सक्रिया अनित्याश्चेति ।
-राजवातिकम् ५ ७ २५ उपरोक्त द्वयम् । २-प्रतिममयपरिणतिरूपा अर्यपर्याया भण्यन्ते । ३-परिणामात् एकममयतिनोऽयपर्याया ।
-प्रवचनसार तात्पर्यवृति अ २ गा ३७ ४-धर्माधर्माकाश कालानाम् मुख्य वृत्यकसमयतिनोऽर्थपर्याया एव जीवपुद्गलानाम् अर्थपर्याया व्यजन पर्यायाश्च ।
--प्रवचनसार अ० २ गा० ३७ तात्पर्य वृत्ति