________________
१४
जन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल
मयुक्त है। पुद्गल अवास्तव नही है। कल्पना मात्र नहीं है। उपचार से अवतिष्ठित नही है। विद्यमान है। त्रिकालवर्ती अस्ति है।
५ पुद्गल कायवाला है
काल को छोडकर, वाकी पांच द्रव्य "अस्तिकाय" कहलाते है'। चीयते इतिकाय । 'काय' शब्द से शरीर अवयवी ग्रहण होता है। काय से प्रदेश का प्राशय भी लिया जाता है। जिसमे शरीर की तरह बहुत से अवयव या प्रदेश पाये जायें, वह कायवाला कहा जाता है। स्कन्ध पुद्गल के एकाधिक अनन्त यावत् अवयवी प्रदेश होते हैं। अत पुद्गल कायवाला है। पुद्गल परमाणु एक प्रदेशी है, लेकिन परमाणु मिलकर बहुप्रदेशी स्कन्ध होता
१-सद्भावो हि स्वभावो गुण सह पर्ययश्चित्र । द्रव्यस्य सर्वकालमुत्पादव्ययध्रुवत्व ।
--प्रवचनसार अ २ गा ४ की छाया। २-अस्ति इत्यय निपात कालत्रयाभिधायी।
-भगवतीसूत्र श २ उ १० को टीका में ३-उत्तकालविजुत्तणादन्वा पच अत्यिकायादु।
-वृहद् द्रव्यसग्रह सूत्र २३ ४-काय प्रदेशराशय । -भगवतीसूत्र श २ उ. १० की टीका में ५-फाया इव बहु देसा तह्मा या काय अत्यिकाया य।।
बृहद् द्रव्यसग्रह सूत्र २४