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जना
जैन पदार्थ-विज्ञान में पुदगल
पुद्गल अनन्त अतीत में लगातार था, वर्तमान काल में लगातार है, तथा अनन्त भविष्यत्काल में लगातार रहेगा। पुद्गल (गुण पर्यायवाला) नित्य तया अवस्थित द्रव्य है। अत यह कभी सर्वथा नष्ट नहीं होगा तथा कभी अन्य द्रव्य में परिणत नहीं होगा।
पुद्गल पुद्गल ही रहेगा। अनन्त अतीतकाल में जितने पुद्गल द्रव्य ये, वर्तमान काल (नमय) मे उतने ही है तथा अनन्त पानेवाले काल में उतने ही रहेंगे। न कभी कोई पुद्गल-द्रव्य विलुप्त हुआ, न वर्तमान समय में विलुप्त हो रहा है तथा न कभी अनागत काल में विलुप्त होगा। अनन्त अतीत में न कोई नवीन पुद्गल द्रव्य वना था, न वर्तमान समय में कोई नवीन पुद्गल द्रव्य बनता है तथा न अनन्न भविष्यकाल में कोई नवीन द्रव्य बनेगा। द्रव्यार्थिक नय से पुद्गल मदा नित्य तथा अवस्थित है।
१-पोग्गले अतीतमणत, सासय समय भुवीति वत्तव्व सिया। पोग्गले पड़प्पण्ण, सासय समय भवीति वत्तव सिया। पोग्गले प्रणागयमणत, सासय समय भविस्सतीति वत्तव सिया।
--भगवतीसूत्र शतक १ उद्देशक ४ २-न जातु चिदनादिकालप्रसिद्धिवशोपनीता मर्यादामतिकामति, स्वलक्षणव्यतिकरो हि निर्भेदताहेतु पदार्थनाम्, प्रत स्वगुणमपहाय नान्यदीयगुणसम्परिग्रहमेतान्यातिष्ठन्ते, तस्मादवस्थितानीति। - लत्त्वार्थसूत्र अ० ५ सू० ३ के भाष्य पर सिद्धिसेन गणि टीका