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जैन पदार्थ - विज्ञान में पुद्गल
विभिन्नता से जाना जाता है । 'गुण' शब्द आधुनिक विज्ञान के 'Properties' शब्द का समवाची है । सज्ञान्तर तथा भावान्तर को पर्याय कहते है ' । गुण अविनाशी और सदा सहभावी है तथा पर्याय क्रमभावी है'। श्रत गुण ध्रुव होता है, और पर्याय उत्पादव्यय होता है । इसीसे द्रव्य को उत्पादव्यय धौवयुक्त कहा जाता है' । वास्तव में गुण और पर्याय एक ही है । गुण का विश्लेपण ही पर्याय है । गुण का क्रमविकास भाव ही पर्याय है । क्रमविकासभाव का पारिभाषिक नाम "परिणमन" है । प्रत्येक द्रव्य में कतिपय गुण क्रमभावी या परिणामी होते हैं और इम परिणमन शक्ति से द्रव्य की — उस गुण अपेक्षित-मजा या भाव में जो अन्तर या परिवर्तन होता है, उसे पर्याय कहते है । उदाहरण – सोने का ढला तथा चूडी । मोने का पीत आदि सहभावी गुण सोने के ढेले तथा सोने की चूडी दोनो में है। आकार ( सस्थान ) ग्रहण करने का सोने का जो क्रमभावी या परिणामी गुण है उससे सोना कभी ढेला, कभी चूडी का आकार ग्रहण कर सकता है। यह आकार परिवर्तन परिणमन है तथा ग्राकार-पर्याय है। ढेले का आकार
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१- भावान्तर सज्ञान्तर च पर्याय । - तत्त्वार्थसूत्र श्र० ५ सूत्र ३७ का भाष्य ।
२ - अनन्तस्त्रिकालविषयत्वाद् अपरिमिता ये धर्मा सहभाविन क्रमभाविनश्च पर्याया । - स्याद्वादमजरी श्लोक २२ की व्याख्या |
३ - उत्पादव्ययधीव्ययुक्त सत् । - तत्त्वार्यसूत्र श्र० ५ सूत्र २६