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प्रथम अध्याय पुद्गल की परिभाषा
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के होने का प्ररुपण या निस्पण नही किया है। इन छ द्रव्यों में से हम यहाँ केवल 'पुद्गल' द्रव्य का अध्ययन करेगे, प्रथमत जैनसिद्धान्त के अनुसार, फिर तुलनात्मक नया समालोचनात्मक दृष्टि से । __•१ "पुद्गल" शब्द की व्युत्पत्ति तथा अर्थ
"पुद्गल" शब्द जैन-धर्म का पारिभापिक शब्द है। यह शब्द बौद्ध-साहित्य में भी व्यवहृत हुआ है लेकिन सर्वथा भिन्नार्थ में। जैन-धर्म का "पुद्गल" आधुनिक विज्ञान के "जड पदार्थ" (matter) शब्द का ममवाची है। ___ “पूरणगलनान्वर्थमनत्वात् पुद्गला'". पूर्ण होना अर्थात् मिलना, बद्ध होना, गलना अर्थात् पृथक् होना--विछुढना। जो मिले नथा जदा हो वह पुद्गल । विष्णु-पुगण में भी कहा है "पूरणात् गलनात् इति पुद्गला परमाणव"-पुद्गल परमाणु मिलते है तथा विलग होते है। मघवद्ध होना-स्कन्धम्प होना, बिछुडना-पृथक् होना-यह पुद्गल द्रव्य का स्वभाव या प्रकृति है। पुद्गल द्रव्य का यह नामकरण उसके इन्ही गुण के कारण हुआ है।
२ पुद्गल की परिभाषा और व्याख्या किमी वस्तु के जिस यथातथ्य वर्णन मे उस वस्तु का मम्यक, निवत, अमन्दिग्ध निश्चय किया जा सके वह यथार्थ वर्णन उम
१-जीव, पात्मन प्रादि अर्थ में। २-सनातन जैनग्रन्यमाला का "तत्त्वार्य राजवात्तिकम" पृ १६० ३-न्यायकोष पृ० ५०२