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5 क्या सापेक्ष की भी सहभगी हो सकती है ? यदि हो सकती है तो निरपेक्ष सत्य की स्वीकृति सहज ही हो जाती है ।
वस्तु कयचित् सापेक्ष है और वह कयचित् निरपेक्ष है । ये दोनो भाग मान्य हो सकते हैं । अर्थ-पर्याय या स्वाभाविक पर्याय की दृष्टि से वस्तु निरपेक्ष होती है । अर्थ-पर्याय की दृष्टि से आकाश आकाश है । आपेक्षिक और वैभाविक पर्यायों की दृष्टि से वस्तु सापेक्ष होती है । सापेक्ष दृष्टि से आकाश घटाकाश, पटाकोश आदि अनेक रूपो मे प्राप्त होता है । जितने व्यजन-पर्याय हैं वे सब सापेक्ष ही होते हैं । इस विश्व व्यवस्था मे कोई एक तत्त्व ऐसा नही है जिसे हम निरपेक्ष कह सकें | किन्तु प्रत्येक द्रव्य निरपेक्ष और सापेक्ष की समन्विति है । निरपेक्षता और सापेक्षता को सर्वथा पृथक् नही किया जा सकता | उनका पार्थक्य भी अपेक्षा से ही होता है अर्थ-पर्याय की दृष्टि से निरपेक्षता और व्यजन-पर्याय की दृष्टि से मापेक्षता है ।
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