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( 45 ) इस सवाद मे अस्तित्व श्रीर नास्तित्व के अविनाभाव का प्रतिपादन हुआ है ।
भगवान महावीर ने 'सर्व अस्ति' और 'सर्व नास्ति'- इन दोनो सिद्धान्तो को स्वीकृति नहीं दी। उन्होंने 'अस्ति' और 'नास्ति' दोनो के समन्वय को स्वीकृति दी । भगवान् के ज्येष्ठ शिष्य गौतम ने अन्य दार्शनिको से कहा - 'देवानुप्रियो । हम अस्ति को नास्ति नही कहते श्रीर नास्ति को अस्ति नही कहते । देवानुप्रियो । हम 'सर्व अस्ति' को अस्ति कहते है और स नास्ति' को नास्ति कहते है ।
इस निरूपण मे केवल अस्ति और केवल नास्ति की अस्वीकृति और दोनो के समन्वय की स्वीकृति है। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि अस्ति और नास्ति दोनो का अपना-अपना स्थान और अपना-अपना मूल्य है ।
6 नित्य और अनित्य का अविनाभाव
___ गौतम ने पूछा 'भते । अस्थिर परिवर्तित होता है, स्थिर परिवर्तित नही होता । अस्थिर मन होता है, स्थिर भन्न नही होता । क्या यह सच है ?'
'हा, गौतम ! यह ऐसा ही है ।
द्रव्य अकम्प और प्रकम्प तथा स्थिर और अस्थिर दोनो का सह-अस्तित्व है । एक अवस्थित और दूसरा निरत र परिशमनशील । जीव अप्रकम्प है, इसलिए वह कभी अजीव नहीं होता और वह प्रकम्प भी है, इसलिए निरतर विभिन्न अवस्थाओ मे परिणत होता रहता है । मडितपुत्र ने पूछ। 'भते । जीव सदा निरत र प्रकपित होता है और फलत नाना अवस्थाओ मे परिणत होता है । क्या यह सच है ?
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भगवई, 7/217 । तए ण से भगव गोयमे ते अण्णउत्थिए एक बयासी नो खलु 44 देवाराप्पिया | अयि भाव नत्यि त्ति दामो, नस्थि भाव अत्यि ति दामो। अम्हे ण देवाणपिया | स०प अयि भाव अस्थि त्ति पदामो, स०५ नत्थि भाव नत्थि ति वदामो।
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भगवई, 1/440 से सूरण भने । अथिरे पलोदृ३, नो थिरे पलोइ ? अथिरे भज्जइ, नो थिर भज्ज? हता गोयमा । अथिरे पलो३, नो थिरे पलोदृ । अथिरे भज्ज३, नो थिर
भज्जइ ।