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अभ्यास | वह शब्द की भावना से नहीं किन्तु निर्विकल्प श्रवस्या की अनुभूति से होता है | उसमे शब्द समाप्त, विकल्प समाप्त और इन्द्रिय समाप्त | बाहर का भत्र कुछ समाप्त हो जाता है |
श्रागम मे प्रतीन्द्रियज्ञान नही होता किन्तु जिन्हें अतीन्द्रियज्ञान प्राप्त होता है उनकी वाणी आगम हो जाती है । शब्द समाप्त होने का अर्थ यह नहीं कि अतीन्द्रियज्ञानी कुछ बोलता ही नही | विकल्प समाप्त होने का अर्थ यह नहीं कि અતીન્દ્રિયનાની कुछ सोचता ही नहीं । नि शव्दता और निर्विकल्पता श्रतीन्द्रियज्ञान के काल मे ही होती है, क्रियाकाल मे नही ।
2 क्या प्रमेय प्रकारणपरतंत्र है ?
प्रमेय की व्यवस्था प्रमारण के अधीन है- इसका अर्थ यह नहीं कि प्रमेय का अस्तित्व प्रमारण के प्रवीन है । प्रमेय भी स्वतन्त्र है और प्रमाण भी स्वतन्त्र है । दोनो का अपना-अपना अस्तित्व है । प्रमाण का काम प्रमेय को उत्पन्न करना नही है, किन्तु उसकी व्याख्या, विश्लेषण और वर्गीकरण करना है | यह व्यवस्था नान के द्वारा ही हो सकती है । इसलिए प्रमेय की व्यवस्था को प्रमाणाधीन मानने मे कोई कठिनाई प्रतीत नहीं होती । पानी है, और हजारो वर्षों से वह है । ५२ पानी की व्याख्या ज्ञान के द्वारा ही की जा सकती है । पानी क्या है ? वह मूल द्रव्य है या यौगिक द्रव्य ? यह व्यवस्था ज्ञान के द्वारा होती है | जहाँ व्यवस्था का प्रश्न है वहा प्रमारण की प्राथमिकता होगी और प्रमेय की गांरणता ।
3 हमारा सामान्य अनुभव यह है कि ज्ञान विकल्पो से होता है । निविकल्प स्थिति मे ध्यान हो सकता है, पर ज्ञान कैसे हो सकता है ?
हमारे पास विकल्प के दो माध्यम हैं मन और भाषा | जब हम विकल्प की स्थिति में होते हैं तब उसकी अलग गहराई में छिपा हुआ चैतन्य अनावृत नही હોતા ! હસે અનાવૃત રને જૈનિ હમે વાય, શરીર, ભાષા શ્રઔર મન ળી નવતતા का मवरण करना होता है । यही निर्विकल्प स्थिति है | यही चैतन्य के प्रावरण को तोडने की प्रक्रिया है । जब चैतन्य का प्रावरण टूटता है तव चैतन्य प्रगट हो जाता है, जो महज है । केवल ज्ञान सूर्य की तरह प्रकाशपुज है । सूर्य के आगे बादल आता है तो प्रकाश मे तारतम्य हो जाता है । प्रकाश की मदता और तीव्रता जैसे बादल की सघनता और विरलता पर आवृत है वैसे ही चैतन्य की स्पष्टता और अस्पष्टता श्रावरण की सघनता और विरलता पर आवृत है । निर्विकल्प चैतन्य की अनुभूति के द्वारा चैतन्य का आवरण विरल हो जाता है | यह आवरण जैसे-जैसे विरल होता है, वैसे-वैसे ज्ञान अभिव्यक्त होता है | अस्पष्टता और स्पष्टता से होने वाले ज्ञान के विभाजनो को श्रीमज्जयाचार्य ने एक चौकी के