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________________ ( 170 ) व्यपदेश कथन । વ્યવસાયી निर्णायक થાપ્તિ कालिक साहचर्य या अविनामाव का नियम । जमे जहा. जहा धूम है वहाँ-वहा अग्नि है। अन्तराप्ति पक्षीकृत विषय मे ही मावन की नाध्य के साथ व्याप्ति मिले, अन्यत्र न मिले, यह अन्तयाप्ति है। इसमें सावर्य नही मिलता। वहिरव्याप्ति - पक्षीकृत विषय के सिवाय भी मावन की माध्य के माय व्याप्ति । इसमें साधर्म्य मिलता है। जा (प्रत्यभिज्ञा) स्मृति और प्रत्यक्ष से होने वाला यह वह है' इस प्रकार का वोध । मभव .-पौराणिको द्वारा मम्मत प्रमाए। का एक प्रकार । मभिन्नश्रोतोलधि - प्रत्येक इन्द्रिय का पानी इन्द्रियों के विषयो को ग्रहण करने की क्षमता का विकास सवृतिसत्य व्यावहारिक या काल्पनिक सत्य । निर्णयशून्य विकल्प । मत्कार्यवाद कार्य की उत्पत्ति से पूर्व उपकी सत्ता कारण मे विद्यमान रहती है ऐमा सिद्धान्त । सास्य सत्कार्यवादी है। मदमत्कार्यवाद कार्य कारणरूप मे मत् और कार्य रूप मे अमत् रहता है एमा सिद्धान्त । जैन सद्सत्कार्यवादी है । ન્દ્રિય ચૌર શ્રર્ય તો સામીપ્ય " सपक्षसत्त्व हेतु का पक्ष (अन्वयदृष्टान्त) मे होना । सप्तमगी सात विकल्प । स्यादवाद के सात विकल्प है। सामानाधिकरण्य दो धर्मों का एक प्राधार मे होना। --अभेद प्रतीति का निमित्त । तिर्यक सामान्य दो या अनेक द्रव्यो में जातिगत एकता, जैसे वरंगद, नीम आदि मे वृक्षत्व । एक ही द्रव्य की पर्यायगत एकता, जैसे वचपन और यौवन मे समानरू५ मे रहने वाला पुरुषत्व । थतनान दात्मक जान । शब्द या संकेत के द्वारा दूसरो को ममझाने में समर्थ ज्ञान । सब मामान्य ऊध्वता सामान्य
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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