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( 149 ) छाह था। उन्होने विद्यार्जन धारा नगरी के 'शारदा सदन' नामक विद्यापीठ मे किया और फिर जैन धर्म के उद्योत के लिए घार। नगरी को छोडकर नलकच्छपुर (नालछा) मे आकर वम गए । लगभग पतीस वर्ष तक वही रहकर इन्होंने जन शान और साहित्य को अपूर्व सेवा की।
पडित श्राधिजी की कुछेक रचनाए 1 प्रमेय रत्नाकर गद्य-पद्यमय ग्रन्थ । 2 जानदीपिका धर्मामृत (सागार-अनगार) की स्वीपज्ञ पजिका।
मूलाराधना टीका शिवार्यकृत आराधना (प्राकृत) की टीका । 4 आराधनासार टीका प्राचार्य देवसेन के आराधनासार नामक प्राकृत
ग्रन्य की टीका।
८ उमास्वाति (ई० 44-85)
उन्होने तत्त्वार्यसूत्र ( मोक्ष मार्ग ) की रचना की। मस्कृत का यह आदि ग्रन्थ माना जाता है । इस ग्रन्य की रचना का भी एक इतिहास है।
सौराष्ट्र मे कैयन नाम का एक श्रावक रहता था। उसके मन मे एक वार यह विचार आया कि उसे मोक्षमार्ग विषयका कोई ग्रन्थ तैयार करना चाहिए । गहरे चिन्तन के बाद उसने यह प्रतिज्ञा की "मैं रोज एक सूत्र की रचना करके ही भोजन करू गा, अन्यथा उस दिन उपवास रखू गा।' इस सकल्प के अनुसार उसने पहला सूत्र बनाया-'दर्शनजानचास्त्रिाणि मोक्षमार्ग ।' विस्मृति के भय से उसने इसे एक खभे प. लिख दिया । दूसरे दिन वह कार्यवश बाहर चला गया। एक मुनि भिक्षा के लिए उसके घर पाए । लौटते समय उनकी दृष्टि उस स्तभ पर ५ढी जिस पर पहला सूत्र लिखा हुआ था । उन्होने उसे पढ़ा और प्रारम्भ मे 'सम्यम्' शब्द जोडकर वे वहा से चले गए। श्रावक द्वैपायन घर आया। सूत्र के आगे 'सम्यम्' सब्द की योजना से उसका मन प्रफुल्लित हो उठा और उसे अपने ज्ञान की न्यूनता का वोध हुआ। वह मुनि के पास पहुचा और ग्रन्थ-निर्माण के लिए मुनि को निवेदन किया। मुनि उसकी भावना को श्रादर दे, अन्य-निर्माण में लग गए । इसी प्रयत्न के फलस्वरूप दस अध्यायो मे विभक्त तत्त्वार्यसूत्र की रचना हुई। तत्त्वार्यसूत्र और और उसका भाष्य-ये इनकी दो मुख्य रचनाए है। श्वेताम्बर और दिगम्बर-दोनो परम्पराए एन्हे समान रूप से आदर देती हैं।
६ कुन्दकुन्द (ई० 127-179)
प्रानीन उल्लेख के अनुसार इनका जन्मस्थान दक्षिण भारत का 'हमपाम' था। इसकी पहचान तामिलनाडु प्रान्त के 'पोन्नूर गाव से की जाती है। उसे ही