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________________ ( 130 ) 'आन्वीक्षिकी' है । ईक्षण के पश्चात् तक हो सकता है, इसीलिए इसे 'आन्वीक्षिकी' कहा जाता है। निरीक्षण या परीक्षण के पश्चात् नियमो का निर्धारण किया जाता है । उन नियमो के आधार पर अनुभव किया जाता है । प्रायोगिक पद्धतिया हमारे लिए अतिम निर्णय लेने की स्थिति निर्मित कर देती हैं। वे स्वयं सिद्धातो का निरूपण नहीं करती। तक ही वह माधन है जिसके आधार पर निरीक्षित तथ्यों से निष्कर्ष निकाले जाते हैं और उनके आधार पर नियम निर्धारित किए जाते है। इस प्रक्रिया का अनुसरण दर्शन ने किया था और विजान भी कर रहा है । वैज्ञानिको ने परीक्षण के पश्चात् इस नियम का निर्धारण किया कि ठंडक से सिकुडन होती है और उच्यता से फैलाव । यह सामान्य नियम सब ५९ ला होता है, पर इसका एक अपवाद भी है । चार डिग्री से जीरो डिग्री तक जल का फलाव होता है । ठडा होने पर भी वह सिकुडता नही है । यह विशेष नियम है । केवल सामान्य नियमो के आधार पर वास्तविक घटनाओ के बारे मे विवानात्मक वात नही की जा सकती । यह सिद्धान्त मंधान्तिक विमान (Theoratical Science), चिकित्सा और कानून तीनो पर लागू होता है । विशेष नियम के आधार पर निर्णायक भविष्यवाणिया (Predictions) की जा सकती हैं, जैसे- एक ज्ञानिक जल की चार डिग्री से नीचे की ठडक के आधार ५२ जलवाहक पाइप के फट जाने की भविष्यवाणी कर देता है । यह सब तर्क का कार्य है । उसका बहुत बड़ा उपयोग है फिर भी उसे निरीक्षण का मूल्य नही दिया जा सकता । जव निरीक्षण के साक्ष्य (Observational evidences) हमारे पास नही हैं तब हम निममो का निवारण किस अधिार पर करेंगे और तर्क का उपयोग कहा होगा ? दर्शन के जगत् मे मैं जिम वास्तविकता की अनिवार्यता का अनुभव कर रहा हूँ वह तीन सूत्रो मे प्रस्तुत है - . 1 नए प्रमेयो की गवेपणा और स्थापना । 2 सूक्ष्म निरीक्षण की पद्धति का विकास । 3 सूक्ष्म निरीक्षण की क्षमता (चित्त की निर्मलता) का विकास । इस विकास के लिए प्रमाणशास्त्र के साथ-साय योगशास्त्र, कर्मशास्त्र और મનોવિજ્ઞાન છે સમન્વિત અધ્યયન હોના વાહણ ! ફલ સમન્વિત પ્રવ્યયન લી ઘારણા मस्तिष्क मे नही होगी तब तक सूक्ष्म निरीक्षण की बात सफल नही होगी। 'योग' दर्शन का महत्वपूर्ण अग है। उसका उपयोग केवल शारीरिक अस्वास्थ्य तथा मानसिक तनाव मिटाने के लिए ही नहीं है, हमारी चेतना के सूक्ष्म स्तरो को उद्घाटित करने के लिए उसका बहुत बडा मूल्य है । सूक्ष्म सत्यो के साथ सपर्क स्थापित करने का वह एक सफल माध्यम है। महर्षि चरक पोधो के पास जाते और उनके गुण-धर्मो को जान लेते । सूक्ष्म यत्र उन्हें उपलव्व नही थे। वे ध्यानस्य होकर बैठ जाते और पावो के गुण-धर्म उनको चेतना के निर्मल दर्पण मे प्रति
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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