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વિનામાવ अनुमान हेतुमूलक होता है और हेतु अविनाभावमूलक । इसलिए अनुमान का प्रधान अग हेतु है और हेतु का प्रधान अग अविनाभाव है। इस अविनाभाव को ध्याप्ति, संघ या प्रतिवन्ध भी कहा जाता है। हम अविनाभाव के आधार पर सार्वभौम नियमो का निर्धारण करते हैं। उन्ही के आधार पर हेतु गमक होता है।
अविनाभाव के आधार ये हैं 1. तादात्म्य, 2 तदुत्पत्ति, 3 सहभाव, 4 क्रमभाव ।
तादात्म्य सम्बन्ध उनमे होता है जो सहभावी होते है हेतु और साध्य, भस्तित्व की दृष्टि से, अभिन्न होते हैं, जैसे यह वृक्ष है, क्योकि यह अशोक है । इस पाक्य मे वृक्ष साध्य है। अशोक है यह हेतु है। इसमें साध्य हेतु की सत्ता के अतिरिक्त किसी अन्य हेतु की अपेक्षा नही रखता, इसलिए यह 'स्वभाव हेतु' है । अशोकरप और वृक्षत्व मे नियत सहभाव है, इसलिए यह तादात्म्यमूलक अविनाभाव है। 'व्यापक' हेतु भी तादात्म्यमूलक होता है। जैसे इस प्रदेश मे पनस नही है, क्योकि वृक्ष नही है । इस वाक्य मे पनस व्याप्य है और वृक्ष व्यापक | व्याप्य का व्यापक के साय नियत सहभाव होता है। जहा वृक्षत्व नही होता पह। पनसत्व नही होता-इस अविनाभाव के आधार पर व्यापक' हेतु बनता है।
धूम अग्नि से ही उत्पन्न होता है, अन्य किसी से उत्पन्न नहीं होता। इस तदुत्पत्ति के आधार पर धूम का अग्नि के साथ कार्यकारमूलक अविनाभाव सबंध है । अग्नि कारण है और घूम कार्य । इसलिए घूम अग्नि का गमक होता है ।
सहभाव तादात्म्यमूलक ही नही होता, जिनमे तादात्म्य नही होता उनमे भी सहभाव होता है। इस आधार पर सहचर हेतु बनता है। रूप और रस दोनो सहचर हैं। ०५ चक्षुग्राह्य होता है और रस जिह्वाग्राह्य । इस स्वरूप भेद के कारण उनमे तादात्म्य सबध नहीं है। उनमे तादात्म्य सबंध नही है इसलिए वे स्वभाव हेतु नही हो सकते । रूप और रस एक साथ उत्पन्न होते हैं और एक साथ उत्पन्न