________________
बाखत वर्णन। या सत्य अस्तेय भर, शीले करि परिणाम । भाषों पञ्चम व्रत जो परिग्रह त्याग सुनाम ॥ ६६ ।।
इति चतुर्थव्रतनिरूपण । इन चारनि बिन ना हुवै, परिग्रहके परिहार । परिग्रहके परिहार बिन, नहिं पावे भवपार ।। ६७ ।। मुनिको सर्वहि त्यागवौ, अंतर बाहिज संग। धर्म अकिंचन घारिवौ, करिवौ तृष्णाभङ्ग ।। ६८॥ अपने आतम भाव बिनु, जो पररूपा वस्तु । सो परिप्रह भाषौ सुधी, ताको त्याग प्रसस्त ॥६६॥ सर्व भेद चउबीस हैं, चउदह अर दस भेलि। अंतर वाहिज संग ये, दुरगति फलकी बेलि ॥ ७॥ परिग्रह द्वै विध त्यागिये, तब लहिये निज भाव । ब्रह्मज्ञानके शत्रु ये, नर्क निगोद उपाय ।। १ ।। अंतरङ्ग परिग्रहतर्ने, भेद चतुर्दश आन । मिथ्यात्वादिक जो सबै, जिन आज्ञा उर मान ।।७२।। राग दोष मिथ्यात अर, घउ कषाय क्रोधादि । षट हास्यादिक वेद फुनि, चन्दस भेद मनादि ।।७।। राग कहावै प्रीति अरु, दोष होइ मप्रीति । राग दोष तम भन्यजन, धरै धर्मकी रीति ॥ ७४ ।। जहा तस्व श्रद्धा नहीं, सो मिथ्यात्व कहाय । जड़ चेतनको ज्ञान नहीं, भर्मरूप दरसाय ॥ ५५ ॥ क्रोध मान बड लोभ ये, चड कषाय बलवन्त । इतियेलान सुषानते, लहिये भाव अनन्त ॥ ७६ ॥