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________________ बारह व्रत वर्णन। शिवपुर सिद्धक्षेत्रकू कहिए और न दूजो शिवपुर लहिये ॥२५॥ शिव है नाम सिद्ध भगवन्ता, अष्टकर्म हर देव अनन्ता। मुक्ति मुक्तिदायक इह शीला, या धरवेमें ना कर ढीला ||२६॥ शील सुधारस पान करै जो, अजरामर पद काय धरै जो। शील विना नारी घृग जन्मा, जन्म जन्म पावे हि कुजन्मा ॥२७॥ गनी राव जशोधर केरी, शील बिना आपद बहुतेरी। लही नरकमें तानें त्यागौ, कदै कुशीलपथ मति लागौ ॥२८॥ शील ममान धर्म जु होई, नाहिं कुशील समौ अब कोई । जे नर नारि शीलवत धारें, ते निश्चै परब्रह्म निहारें ॥२६॥ त्यागे दशो दोष बलवन्ता, ते सुनि एक चित्त करि सन्ता । अंजन मंजन बहु सिंगारा, करना नहीं बतिनको भारा ॥३०॥ तजिवो तिनको असन गरिष्ठा, अर तजिवौ संसर्ग सपष्टा। नरको नारीको संसर्गा, नारिनकों उचित न नरवर्गा ॥३१॥ बै संसर्ग थकी जु विकारा, अर तजिवौ तौर्यत्रिक सारा। तौर्यत्रिकको अर्थ जु भाई, गीत नृत्य बाजित्र बजाई ॥३२॥ मुनिको इनते कछुहु न कामा, श्रावकके पूजा विश्रामा । करे जिनेश्वर पदकी पूजा, जिन प्रतिमा बिन और न दूजा ॥३॥ अष्टद्रव्यसे पूजा करई, तहा गीत वादिन जु धरई। नृत्य करै प्रमुजीके आगे, जिनगुनमें भविजन मन लागै ॥३॥ और न सिंगारादिक गावे, केवल जिनपदसों डर लावे । नारी-विषयनका संकलपा, तजिवौ बुधकों सर्व विकलपा ॥३॥ अंग अपंग निरखनों नाहीं, जो निरखै तो दोष धरा ही। सतकारादिक नारी जनसों, करनों नाही मन-बच-तनसो ॥३६॥
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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