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पन किया। जीवमात्रको मित्र जो, शीलवंत गुणवान ।। भाव शुद्ध जाके सदा, नहिं प्रपंचको लेस । परधन पाहन सम गिने, तृष्णा तजी विशेष ॥ तारै गृहपनि हू प्रवल, ताकी क्रिया अनेक । जिनमें त्रेपन मुख्य हैं, तिनमें मुख्य विवेक ।। नमस्कार गुरुदेवको, जे सब रीति कहेय । जिनवानी हिरदै धरी, ज्ञानवन्त ब्रत लेय ॥ क्रियाकाडकों करि प्रणति भाषों किरिया कोष । जिनशासन अनुसार शुभ, दयारूप निरदोष ॥ प्रथमहिं त्रेपनजे क्रिया, तिनके वरनों नाम । झान-विराग-सरूपजे, भविजनकू विश्राम ।।
त्रेपन क्रिया । गाथा-गुण-वय सम-पडिमा, दाणं जलगालणं च मणस्थामियं । दसणणण चरित्तकिरिया तवण्ण सावया भणिया ।
चौपाई। गुण कहिये अटमूल जु गुणा, वय कहिये व्रत द्वादस गुणा। तव कहिये सप बारह भेद, सम कहिये समदृष्टि अभेद ॥७॥
पडिमा नाम प्रतिज्ञा सही, ते एकादस भेद जुलही। दाण कहिये दान जु चार, अर जलगालण रीति बिचार ।। निसिको खानपान नहिं भला, मन्न औषधी दूध न अला। रात्रि विय कछु लेवौ नाहि, अति हिंसा निसिभोजन माहिं ॥