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बारह व्रत वर्णन 1
कायर कृपण समान नहिं, सुभट न त्यागी तुल्य । रंक न आमादाससे, लहै न भाव अतुल्य ॥ संत न आशा रहित से, आशा त्यागे साध । साध समान अबाध नहिं, करहिं तत्त्व आराध ॥ निज गुणसे नहिं भूषण, भूखन चाहि समान । वस्त्र न दश दिश सारिखे, इह भाणे भगवान || भोजन तृपति समान नहि, भोजन गगन जिसौन । राजन शिवपुरराज मो, जामें काल धकोन ॥ राव न सिद्ध अनन्तसे, साथ न भाव समान । भाव न ज्ञानानंदसे, इह निश्च परवान || चेतनता सत्ता महा, ता सम पटरानी न । शक्ति अनतानंतसी, राज लोक जानी न ॥ नारकसे दुखिया नहीं, विषयी देव जिसैन 1 चिन्तावान मिनससे, असहाई पशुसे न ॥ सूक्षम अलभ प्रजापता, जीव निगोद निवास । ता सम सूक्षम थावर न, इह जिन आज्ञा भास ॥ २० ॥ अस्यासे बेइन्द्रिया, और न अलप शरीर ।
नहीं कुन्थियासे अलप, ते इन्द्रिय सन वीर ॥ काणमच्छिकासे न तुच्छ, चौइन्द्रिय तन धार । तन्दुलमच्छ समान तुछ, पंचेन्द्रि न विचार || चुगली - बोरी अति बुरी, जोरी जारी ताप । चोरी चमचोरी तथा जूवा आमिष पाप ॥ मदिरा मृगया मागना पर महिला प्रीति ।
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