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जैन-क्रियाकोष |
विकासोन प्रलाप है, आरतिसो न विलाप । थाप न द्वय नय थापसो, जिनवरसो न प्रताप ॥ सन्ताप न को मोकसो, लोक न सिद्ध १ समान । धन प्राणनके नाशसो, और न शोक बखान ॥ जडजिय २ सो अमलाप नहीं, गुणमणिमो न मिलाप । श्रीजिनवर गुणगानसो, और न कोई अलाप ॥ ५० ॥ नहि विकथा नारिनिसी, कथा न धर्म समान । नहीं आरति भोगात्ति सी, दुरगतिदाई आन ॥
कार समान नहीं, सर्व शास्त्रकी आदि । महा मगलाचार है, यह उपचार अनादि ॥ नाद न मोऽहं सारिखौ, नहीं स्वरस३मो स्वाद । स्यादवाद सिद्धातसो, और नहीं अविवाद ॥ एक एक नय पक्षसो, और न कोई स्वाद । नाहिं विषाद विवादसो निद्रासो न प्रमाद || सत्यानगृद्धिनिद्रा जिसी, निद्रा निथ न और । परनिंदामो दोष नहिं, भाषें जिन जगमौर ॥ निंदा चविधि संघकी, ता सम अघ नहिं कोय । नाहि मुनिसे अध्यातमी, सर्व विषय प्रतिकूल ॥ विषय कषाय बराबरी, बैरी जियके नाहिं | ज्ञान विराग विवेकसे, हितु नहिं जग माहिं || अध्यातम चरचा समा, चरचा और न कोय । जिनपद अरचा सारिखी, अरचा४ और न होइ ॥
१ मोक्ष । २ मूख । ३ आत्मरस । ४ पूजा