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जैन-क्रियाकोष। बहुरि अनागत कालमें, बैंगे तीरथनाथ । महापद्म प्रमुख प्रभु, चौबीसा बडहाथ ॥३०॥ तातें सोही भासि है, जै जोऽनादि प्रबन्ध । सबको मेरी बन्दना, सबको एक निबन्ध ।। चौबीसी तीन नमू नमो तीस चौबीस । श्रीमंधर आदि प्रभु नमन करो फुनि बीस ।। पंद्रा कर्म धरा सर्वे, तिनमे जे जिनराय । अर सामान्य जु केवली, वर्तं निर्मल काय ॥ तिन सबको परनाम करि, प्रणमो सिद्धअनंत । आचारिज उपाध्यायको, बिनऊंसाधु महन्त ।। तीन कालके जिनवरा, तीन कालके सिद्ध । तीन कालके मुनिवरा बन्दो लोक प्रसिद्ध । पंच परमपद-पदप्रणमि बन्दों केवलवानि । बंदों तत्वारथ महा, जैनधर्म गुणखानि ॥ सिद्धचक्र बंदिके सिद्ध जन्त्रकू बन्दि । नमि सिद्धान्त-निबंधकों, समयसार अभिनंदि ॥ बंदि समाधि सुतंत्रा, नमि समभाव-सरूप । नमोकारकू करि प्रणति, भाषोंबत अनूप ॥ चउ अनुयोगहिं वदिके, चउ सरणा ले शुद्ध । बउ उत्तम मंगल प्रणमि, कहू क्रिया अविरुद्ध ॥ वेद-धर्म गुरु प्रणति करि, स्यादवाद अवलोकि । कियाकोष-भाषा कहू, कुन्दकुन्द मुनि ढोकि ॥४०॥ भरचों चरचा जैनकी, चरचों चरचा जैन ।