________________
बारह व्रत वर्णन। दोहा-सत्यप्रभावै धर्मसुत, गये मोक्ष गुणकोश ।
लहे झूठ अर कपटते, दुर्बोधन दुख दोष ।। जे सुरझें ते सत्य करि, और न मारग कोय । जे उरझें ते झूठ करि, यह निश्च उर लोय ॥ सत्यरूप जिनदेव है, सत्यरूप जिनधर्म । सत्यरूप निम्रन्थ गुरु, सत्य समान न पर्म ।। सत्यारथ आतम धरम, सत्यरूप निर्वाण । सत्यरूप तप संयमा, सत्य सदा परवाण ॥ महिमा सत्य सुबत्तकी,कहि न सके मुनिराय । सत्य वचन परभावतें, सेवें सुरनर पाय ।। जैसो जस है सत्यको, तैसौ श्रीजिनराय । जानें केवल ज्ञानमे, परमरूप सुखदाय ॥ और न पूरण लखि सके,कीरति सुर नरनाग। या प्रत धारे सदा, तेहि पुरुष बडभाग ॥६॥ नमस्कार या वृत्तको, जो प्रत शिव-सुख देय । अर याके धारीनको, जे जिनशरण गहेय ।। दया सत्यकों कर प्रणति, भाषा तीजों व्रत्त । जो इन द्वय बिन ना हुवै, चोरी त्याग प्रवृत्त ।।
चोरी छाड़ो अड भाई, चोरी है अति दुखदाई। चोरी अपजस उपजावै, चोरीते जस नहि, पावै॥' . घोरीते गुणगण नाशा, चोरी दुबुद्धी प्रकाशा। चोरीतें धर्म नशावै, यह आशा श्रीगुरु गावे ॥