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________________ अन-क्रियाकोष। को कैसे, भाष बुधजन धारहु ऐसे ॥१०२॥ श्रेपन किरियाको यह मूला, रत्रनत्रय चेतन अनुकूला। जिन धान्यौ खिन मापौ वायो याकरि बहुतनि कारिज साग्यो ।।१०२॥ धन्नि घरी वह हंगी भाई, रतनत्रयसों जीव मिलाई । पहुंचेगो शिवपुर अविनाशी, हावें वे मति आनन्द राशी ।।१०४॥ सब प्रन्थनिमें त्रेपन किरिया, इन करि इन बिन भववन फिरिया। जो ए त्रेपन किरया धारै, सो भवि अपना कारिज सारै ॥१५॥ सुरग मुकति दाता ए किरिया, जिनवानी सुनि जिनि ए धरिया । तिन पाई निज परिणति शुद्धा, शानस्वरूपा अति प्रतिबुद्धा ।।१०६ ।। है अनादि सिद्धा ए सर्वा, ए किरिया धरिवौ तजि गर्वा । ठौर ठौर इनको अस भाई, ए किरिया गावै जिनराई ॥१८७॥ गणधर गावै मुनिवर गावे, देव भाषमैं शबद सुनावै । पंचमकाल माहिं सुरभाषा, विरला समझे जिनमत साखा ॥१०८॥ तातें यह नरभाषा कीनी, सुरभाषा अनुसारे लीनी। जौ नरनारि पढ़े मनलाई, सौ सुख पार्दै अति अधिकाई ॥१०६॥ संवत सत्रास पच्याण्णव, भादव सुदि बारस तिथि जाणव। मंगलवार उदयपुर माह, पूरन कीनी संसय नाहैं ॥११०॥ आनन्द-सुत गयसुतकौ मंत्री, जयकौ अनुचर जाहि कहै । सो दौलत जिनदासनि दासा, जिनमारगकी शरण गहै । १११ ।। *समाप्त*
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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