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________________ २२१ anmommanoveuver रखनमय वर्णन। किंचित मेव पराई ॥ ६४ ॥ मिन्न, भिन्न मारपन तिनका, शानबन्तके होई जिनका । एक चेतनाके द्वै भाषा, दरसन ज्ञान महा सुप्रभावा॥६५॥ दरसन है सामान्य स्वरूपा, ज्ञान विशेष स्वरूप शिल्पा दरसन कारन शान सुकार्या, प दोऊन हे हि अनार्य ॥६६॥ निराकार दर्शन उपयोगा, हान घरै साकार नियोगा। कोऊ प्रश्न कर इह भाई, एककाल उत्पत्ति बताई ॥ १७ ॥ दरसन ज्ञान दुहुनको ताते, कारन कारिज होइ न ताते। ताको समाधान गुरु भाई, जे धारे ते निजरस चाखें ।।.६८ ॥ जसे दीपक भर परकाशा, एक काल दुईको प्रतिमासा। पर दीपक है कारनरूपा, कारिज रूप प्रकाशनरूपा ॥६धा से दरशन ज्ञान अनूपा, एक काल उपजे निजरूपा। दरसन कारनरूपी कहिये, कारिजरूपी शान सु गहिये ।।७०॥ विद्यमान हैं वरख सबै ही, अनेकांववारूप पर्वै ही। तिनको जानपनौ जो भाई, संशय बिधम मोद नशाई ॥७१।। ओ विपरीत रहित निजरूपा, मातमभाव अनूप निरूपा । सो है सम्यकशान महन्ता निजको भानपनों विलसण्ता। अष्ट अंगकरि शोभित सोई, सम्यकसान सिद्धकर होई। ते धारी भवि माठों शुद्धा, जिनवाणी अनुसार प्रदा ॥ ७३ ॥ शन्द शुद्धता पहलों मझा, शुद्ध पाठ पढ़ाई जुसमझा । मर्थ शुद्धता मा द्वितीया, करे शुदमर्थ झु विधि लीया ॥७॥ शन्द अर्थ दुहुकी निर्मलता, मन वा तन काया निहचळता। सो है तीजा म विशुद्धा, सम्यका बारे प्रतिपदा II कालाध्यायन चतुर्थम मां, वाकी व सुनौ अविरत । जा.बिरियां जो पाठ अधिवा, सोही पाठ करे पविस्ता विनय भक्त है पंचम भाई, विनयरूप रहिनौ मुखाई। सो
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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