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________________ २२० जौन-क्रियाकोष गिर्ने सहु अदया। बिनु जिनदेव और हैं मेते, लजु देवा भास सुते ते ॥५२॥ श्रद्धानी सो सत्वविज्ञानी, धरै सुदर्शन मातमध्यानी ! कर धर्मको जो बढ़वारी, सदा सु मार्दव आजवधारी॥५३॥ पर भौगुन ढाकै बुधिवंता, सो सम्यकदरशनघर संता! काम क्रोध मद बादि विकारा, तिनकरि भये विकल मति धारा ॥५४॥ न्यायमार्ग विचल्यो वाहै, मिथ्यामारगको जु उमाहै। तिनको हानी थिरचित कार, युक्तथको भ्रमभाव निवारे ॥५५॥ आप सुधिर और थिर कारे, सो सम्यकदरसन गुण धारै। दयाधर्ममें जो हि निरन्तर, करै भावना उर नभ्यन्तर ॥५६॥ शिवसुख लक्ष्मी कारण धर्मों, जिनभासित भवनाशित पर्मों। तासौं प्रीति धरै मधिकरी, अर जिनधर्मीनसू बहुतेरो।। ५७ ॥ प्रीति करे सो दर्शनधारी, पावै लोकशिखर अविकारी । यथा तुरतके बछरा ऊपरि, गो हित राखे मन वच सन करि ।।५८॥ तथा धर्म धर्मनिसौं प्रीती, जाके ताने शठता जीती । आतम निर्मल करणों भाई, अतिसयरूप महा सुखदाई ॥ ५६ ॥ दर्शन ज्ञान चरण सेवन करि, केवल उतपति करनौ भ्रम हरि । सो सम्यक परभाव न होई, परभावनको लेश न कोई ।। ६० ॥ दान तपो जिनपूजा करिके, विद्या अतिशय मादि जु धरिकै । जैनधर्मकी महिमा कार, सो सम्यकदरशन गुण धारै ॥६॥ ए दरशनके अष्ट जु अंगा, जे धारै उर माहिं अभङ्गा । ते सम्यकी कहिये वीरा, जिन आज्ञा पालक ते धीरा ॥ १२॥ सेवनीय है सम्यकज्ञानी, माया मिख्या ममता भानी। सदा मात्मरस पी घल्या, ते झानी कहिये नहिं अन्या ।। ६३ ॥ वद्यपि दरसन शान भिन्ना, एकरूप है सदा मभिन्ना । सहभावीए दो भाई, सौ पनि
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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