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________________ जन-क्रियाकोष। तीजी निंदन गुण सौ. निमकों निंदै जोइ । मतमैं पछितावौ करें, भव भरमणको सोइ ॥१॥ चौथौ गरहा गुन महा, गुरुचे भाचे वीर। अपने नौगुन समकिसी, नहीं सिपाचे धीर ॥२॥ पंचम उपशम गुण महा, उपसमता अधिकार । प्रान हरै साहूबकी, बैर न चित्त पराय ॥३॥ छहौ गुण भती परें, सम्बकाष्टी संत। पञ्च परमपदको महा, पार सेव महंस ॥४॥ सतम गुण वात्सल्य मो, जिन धर्मिनसौं राग। अष्टम अनुकंपा गुणो, जीपल्या प्रत लाग॥५॥ काय गाथा-संवेऊ णिवेड, णिवण गरुहान उपसमो भत्ती। वच्छल्लं मनुकंपा, मट्टगुणा हुँति सम्मत्ते ।। चौपाई-भन्यजीव चहुंगसिके माही,पावै समकित संसय नाही। पंचेन्द्री सैनी विनु कोय, और न सम्यकदृष्टी होय ॥७॥ अब संसार अलप ही रहै, तब सम्यक दरशनकों गहै। प्रथम चौकरी नीन मिथ्यात, ए सातों प्रकृती विख्यात ॥८॥ इनके उपशमतें जो होय, उपशम नाम कहावै सोय । इनके क्षयतें क्षायिक नाम, पावै मनुष महागुण धाम || क्षायिक मनुष बिना नहिं लहै, क्षाायक तुरत ही भववन है। केवल आदि मूल इह होय, क्षायिक सो नहिं सम्यक कोय॥१०॥ अब सुनि भय उपसमको रूप, तीन प्रकार की जिनभूप। प्रथम चौकरी क्षय है जहा, तीन मिथ्यात उपसमैं वहा ॥१॥ पहली क्षय उपशम सो आनि, जिनवानी उरमैं परवानि ।
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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