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________________ anha बारह वर्णन। साल तशि जड़ संगतो, भये शान अनुज ॥२॥ स्त्री पशु-बाल-विमूढ़की, संगति अति दुखदाय। कायरकी संगति थकी, सूरापन विनसाय ॥३॥ जे एकांत वसैं सुधा, अनेकात धरि चिच । ते पावै परमेसुरो, लहि रतनत्रय क्ति ॥ ४ ॥ मुनिकी रीति कही भया, सुनि श्रावककी रीति । जा विधि पंचम तप करै, धरि जिन बचन प्रतीत ॥५॥ निजनारीहूते विरत, परनारीको वीर। शीलवान शातिक अती, तपधारें अति धीर ॥६॥ परनारीकी सेज भर, आसन चीर इत्यादि । कबहुं न मीटै भव्य जो, तजे काम रागादि ॥७॥ निज नारीहुको तमे जौलग त्याग न होय । तौ लग कबहुँक सेवही, बहुत गग नहिं कोय ॥८॥ एक सेज सोवै नहीं, अदौ जू सोवै जोहि । जब विविकशय्यासना, पावै सप अति सोहि ॥६॥ कर परोस न दुष्टको तमे दुष्टको संग। विसतोते दूरी रहै, पाले ब्रत अभंग ॥१०॥ जे मिथ्यामत धारका, अलगौ निनसों होई । जिनपरनीकी संगति, धारै उत्तम सोइ ॥ ११ ॥ कुगुरु देव कुषमको, करै न जो विश्वास । है विश्वासी जैनको, जिनदासनिकौ दास ॥ १२ ॥ सामायक पोषा सम, गर्दकत सुबान । सो विविशवासना, मा श्री भगवान ॥१३॥
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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