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बारह ब्रत वर्णन। एती वस्तु सौ त्यागे धीर, राति परै नहिं सेबे वीर । भोजन पटरस पान समस्त चंदनलेप आदि परसस्त ॥४॥ सजे राति तंबोल सुवीर, दया धर्म उर धारै धीर । गीत श्रवण जो होय कदापि, राखें नेम माहिं सो कापि ॥ ४३ नृत्यहुमों नहिं जाको भाव, पैन सर्वथा मांड्यौ चाव । जौ लग गृहपति कवहुक लखौ, सोहु नेममाहि जो रसौ ॥ ४४ ॥ ब्रह्मचर्यसों जाको हेत, परनारीसों वार सचेत।। निज नारीहीमे संतोष, दिनको कबहु न मनमथ पोष ॥४५॥ रात्रिहुमे पहले पहरौ न, चोथी पहरौ मनमथको न । दूजी तीजी पहर कदापि, पर सेवनो मैथुन कापि ॥४६॥ सोहू अलपथकी अति अल्प, नित प्रति नहिं याको संकल्प । राखै नेम माहिं सह बात, बिना नेम नहिं पाव धरात ॥४७॥ स्नान रातिकों कबहु नकर, दिनको स्नान सनी विधि घरै ।। भूषण वस्त्रादिकको नेम, राखै जाबिधि धारै प्रेम ॥४८॥ वाहन शयनाशनकी रीत, नेम माहिं धार सहु नीति । वस्तु सचित नहिं निसिकों भखै, रजनीमें जलमात्र न चखे ।४६ खान पानको वस्तु समस्त, रात्रि विष कोई न प्रशस्त । याविधि सतरा नेम जु धरै, सो व्रत धारि परम गति वरै ५० नियम बिना धृग धृग नर मन्म, नियमवान होवहि माजन्म । यमनियमासन प्रणायम प्रत्याहार घारणा राम ॥५१॥ ध्यान समाधि अष्ट ए अंग, योगतने भाषे जु असंग ।। सबमें श्रेष्ट कही सुसमाधि, नियमथकी उपजै निरुपाधि । ५२ रागदोपको त्याग समाधि, जाकरि टरै माधि अरु व्याधि ।