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जैन-क्रियाकोष
पत्र फूल फल कूपल आदि, छालि मूल अंकुर वीजादि ||२८|| मन बच तन करि नीली हरो, त्यागें उरमे दृढ व्रतधरी । जीव दयाको रूप निदान, पट कायाको पीहर जान ||२६|| पाल्यौ जैन वचन जिन धीर, सर्व जीवको मेटी पोर । छुट्टी प्रतिमा धारक मोई, दिवस नारिको परम न होई ॥३०॥ रात्रि विषे अनसन व्रत धरै, चर अहारको है परि हरे । गमनागमन तजै निशि माहिं मनबचतन दिन शील धराहिं ॥ ए पहलीलो छुट्टी लगे, जघन्नि श्रावक के प्रत जगें । पतिव्रता व्रतबती नारि, मध्यम पात्र जघन्नि विचारि ||३२|| ras और श्राविका जेह धरवारी नचारी तेह | मध्यम पात्तर कहे जघन्य, इनकी सेव करे सो धन्य ॥३॥ वस्त्राभरण अन्न जल आदि, धान मान औषध दानादि । देवे श्रुत सिद्धान जु बीर, हग्नी तिनकी सब ही पीर ||३४|| अभयदान देवो गुणवान, करनी भगनि कहैं भगवान । भवजलके द्रोहण ए पात्र, पार उतारें दरसन मात्र ||३५| दोहा - सप्तम प्रतिमा धारका ब्रह्मचर्य व्रत धार ।
नारीको नागिन गिने, लख्यौ तत्व अविकार ॥ २६ ॥ मन वच तन करि शोलधर, कृत कारित अनुमोद | निजनारोहूकू तजे, पावै परम प्रमोद ॥ ३७ ॥ जैसे ग्यारम दशम नव, मष्टम पड़िमाधार । मन बच तन करि शील धरि, तैसे ए अविकार ।। ३८ ।। तिनतें एतो आतरो, आरम्भ वितीत |
इनके अलपारम्भ है, क्रोध लोभ छळ जीत ॥ ३६ ॥
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